मधु शंखधर स्वतंत्र

 *गीत*

असतो मा सद्गमयः, अन्तर्मन विश्वास।

तमसो मा ज्योतिर्गमय , जीवन आए रास।।


शाश्वत जीवन की डगर, शाश्वत होती भोर।

कर्तव्यों की राह पर, सभी मचाएँ शोर।

सतत कर्म से ही बँधी, जीवन नैया डोर,

कर्म बिना आता नहीं, सुख वैभव यह पास।

असतो मा सद्गमयः........।।


तृण तृण से अतुलित करे, कोष निरंतर कर्म।

माली सींचे बाग को, समझ स्वयम् का धर्म।

ईश्वर की है साधना, सत् कर्मों की आस।

असतो मा सद्गमयः...........।।


कोटि जतन करके यहाँ, हार गया है पाप।

धर्म सदा विजयी रहे, अरु कुकर्म अभिशाप।

नित पूजा वंदन करो, कर्म योग से खास।

असतो मा सद्गमयः...........।।


दिव्य शौर्य आभा सदा, धर्म निहित उन्मूल।

श्री चरणों में धर्म से, सतत खिलाएँ फूल।

शोभित मन के भाव से, मिटे ह्रदय की त्रास।।।

असतो माँ सद्गमयः..........।।


सत्य शिवम् सुंदर बसा, ह्रदय प्रभु श्री राम।

काशी में शिव वास है, राम अयोध्या धाम।

सकल सुमंगल वर मिले, जीवन हो *मधु* रास ।।


असतो मा सद्गमयः......।।

*मधु शंखधर 'स्वतंत्र*

*प्रयागराज*

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