डॉ० रामबली मिश्र

 प्रेम मगन हो कर…(चौपाई)


प्रेम मगन हो कर नाचेंगे।

प्रेमीजन खुद ही आँकेंगे।।

देख-देखकर नृत्य मनोहर।

सब झूमेंगे मानव सुंदर।।


सुंदर मानव वही एक है।

प्रेमातुर जो दिव्य नेक है।।

प्रेम वही है जहाँ सत्य है।

प्रेमहीन दानव असत्य है।।


सत्यार्थी ही प्रेमी बनता।

प्रेम पंथ का परिचय देता।।

प्रेम पंथ पर गंगा बहतीं।

सबका तन-मन चंगा करतीं।।


सकल विश्व संगममय होगा।

सारा जगत सजल जब होगा।।

आँखों में जब करुणा होगी।

मानवता प्रिय तरुणा होगी।।


दिव्य भावमय दुनिया होगी।

प्रेम नाम की मनिया होगी।।

प्रेम मंत्र का जाप चलेगा।

सत्व प्रेम से पाप कटेगा।।


दिल में रसमय सरगम होगा।

प्रेम  गीत का मरहम होगा।।

नाचेंगे हम झूम-झूमकर।

मानवता को चूम-चूमकर।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी



मस्ती में…   (चौपाई(


मस्ती में ही चलते रहना।

द्वंद्व छोड़कर आगे बढ़ना।।

चिंता छोड़ो प्रिय ईश्वर पर।

चलते रहना न्याय पंथ पर।।


मस्ताना अंदाज निराला।

सबका रक्षक ऊपरवाला।

बनो पाठशाला हितकारी।

पाठ पढ़ाओ शिष्टाचारी।।


दंभ कपट को सहज त्यागना।

मिथ्यावादन कभी न करना।।

सच्चाई की राह पकड़ना।

मित-मृदुभाषी बनकर चलना।।


चलना सीखो शीश झुकाकर।

कर प्रणाम नतमस्तक हो कर।।

प्रभु चरणों में न्योछावर कर।

बाँट स्वयं को बन प्रसादघर।।


लूटो नहीं लुटाओ खुद को।

सीखो और सिखाओ सबको।।

प्रेम रसामृत महज पिलाओ।

आनंदी जल में नहलाओ।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801



मजलिस    (चौपाई)


मेरी मजलिस में आना है।

प्रेम गीत तुझको गाना है।।

पैर में घुँघरू बाँधे रहना।

झूम-झूम कर सदा नाचना।।


बीच-बीच में बोला करना।

श्रोता को संबोधित करना।।

प्रेम शव्द पर वार्ता करना।

श्रोत का दुःखहर्त्ता बनना।।


मजलिस की शोभा बन जाना।

नाच-नाच कर रंग जमाना।।

मुस्कानों से मन भर देना।

सबको हराभरा कर देना।।


मजलिस में आकर छा जाना।

प्रेम शव्द का अर्थ बताना।।

देखो सबमें झाँक-झाँक कर।

फैले जलवा मधुर मनोहर।।


हो व्याख्यान प्रेमरसपूरित।

झाँकी में हो प्रेम सुशोभित।।

रस बरसे टपके मधु सब पर।

 दिखे प्रेमश्री हर मस्तक पर।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801


हंसवाहिनी मधुशाला


नीरक्षीर को अलग-थलग, कर देता है मेरा प्याला;

मधुर क्षीर से सराबोर है, मेरी मधुमय प्रिय हाला;

सद्विवेक के चरम शीर्ष पर, खड़ा दीवाना साकी है;

सर्व लोक में सर्व मान्य है, हंसवाहिनी मधुशाला।


मधुर राग सब में भर देने, को आतुर मेरा प्याला.,

कला और संगीत सुधामय, है मेरी मादक हाला;

परम मदनमय प्रिय मनरंजक,मनमोहक मेरा साकी;

जनमानस की बनी रंजनी, हंसवाहिनी मधुशाला।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801


नित्य नयेपन का अहसास

               (वीर रस)


नित्य नयेपन का अहसास,

      लाता रोज मधुर खुशियाँ हैं।

मन में उठता अति उल्लास,

      दिल में छा जाता उमंग है।

अंतस हर्षित अति रोमांच,

      सब कुछ लगता दिव्य नवल नव।

रख सबके प्रति अभिनव भाव,

       दृश्य बदल जायेगा तत्क्षण।

नहीं पुराना किसी को मान,

       रखना भाव सहज नूतन का।

पाते रहना दिव्य प्रसाद,

        जीवन में आनंद मिलेगा।

नहीं पूरानी कोई चीज,

       सबमें खोजो नयी नवेली।

इसी खोज से पहुँचो लोक,

       यही लोक बैकुण्ठ धाम है।

करते रहना सदा प्रयास,

       जीवन पर्व बनेगा निश्चित।

पा जाओगे अंतिम धाम,

       यही नयेपन का रहस्य है।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

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