दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

 औषधि अपना गुण न दिखाये, 

नहीं   व्याधि   को  ठीक  करे।

तब   समझो   सब  अंतिम  है,

अन्न जल भी खुद को खाक करे।।


देख चिता धू-धू जल लव रूप दिखाये,

मृत्यु  अटल  सत्य  बने  स्वीकार  करे।

जीवन   पथ   का   अंतिम   पड़ाव   है,

नवकिसलय का पथ सुलभ स्वीकार करे।।


श्मशान पर खुद में खुद को लोग मिले, 

करते  शाश्वत   सम्प्रभुता  की  तैयारी।

कैसी है दिल दुखाने  की  ये  रीति यहां,

क्षमा  भी  मांग  लेते  हैं  कर  विचारी।।


संकल्प  हृदय  पथ  के  अविचल,

तूफानों के उफानों से भरा है मन।

डाली से पत्ते के  झड़ने  सा  दु:ख

लिये फिरता है सारा जीवन मृत तन।।


निश्छल उर जो हो पूण्य आत्मा,

उनको ही स्वर्गासन मिल जाये।

पापी, कपटी, कलुषित  उर का, 

नरक  द्वार   ही   खुल   जाये।।


जीवन अमृत धरा धाम का, 

हर उर को पावन करता है।

भले न मानव रहता जग में,

उसकी अच्छाई आसन करता है।।



    दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

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