सितारा रातभर का हो गया हूं।
उजाला एक घर का हो गया हूँ।
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यूं तो हैं मंजिलें मेरी बहुत सी।
पता पर इक सफ़र का हो गया हूँ।
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बहुत रोया मै जिन्हें याट करके।
मैं तारा उस नज़र का हो गया हूं।
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वो भगवन मेरे बरगद के हैं जैसे।
मैं पत्ता उस शज़र का हो गया हूँ।
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खबर जो चारसू मेरी हैं फैली।
हरफ़ मैं उस ख़बर का हो गया हूँ।
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सुनीता असीम
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