डॉ० रामबली मिश्र

 बहुत दूर…


बहुत दूर रहकर भी नजदीकियाँ हैं।

दिल से अदब से मधुर शुक्रिया है।।


मिली राह निःशुल्क अहसास की है।

नहीं दूरियाँ हैं नहीं गलतियाँ हैं।।


मन की है स्वीकृति तो सब कुछ सरल है।

गरल में भी अमृत की मधु चुस्कियाँ हैं।।


तरलता मधुरता सुघरता सहजता।

कली सी चहकती मधुर बोलियाँ हैं।।


नजदीक वह जो हृदय में बसा है।

बसेरे में चम-चम सदा रश्मियाँ हैं।।


न भूलेंगे जिसको वही तो निकट है।

बहुत दूर रहकर खनक चूड़ियाँ हैं।।


जहाँ मोह साकार बनकर विचरता।

वही तो मोहब्बत का असली जिया है।।


नहीं चिंता करना कभी दिल के मालिक।

दिल में ही रहतीं मधुर हस्तियाँ हैं।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...