एस के कपूर श्री हंस

 *विषय।।दिल।ह्रदय आदि शब्द* 

*पर केंद्रित ।।*

*।।रचना शीर्षक।।*

*।। दिल से उतरो नहीं,दिल में*

*उतर जायो।।*

*विधा।।मुक्तक ।।*


न गुड़ न गुड़ सी बात यही

कुछ   लोगों   का काम है।

इसी में   मिलता  कुछ को

बहुत   ही  आराम        है।।

अहंकार में     जीते     वह

पर दिल से हैं   हार   जाते। 

किसी दिल में     नहीं  उन

का      उतरता    नाम   है।।


बात जो दिल में  होती  वो

जुबां पर आ ही  जाती  है।

क्या बसा  आपके मन  में

वह सब कुछ     बताती है।।

कहते   कि मन   मस्तिष्क

सदा ही साफ   रखें  आप।

आपकी हरबात ह्रदय  का

शीशा बन  कर आती   है।।


सदा यूँ बोलें कि    दिल से

न उतरें उसमें    उतर जायें।

किसी के दर्द   को   समझें

थाह उसके अंतस की पायें।।

ऐसे बोल   हों   कि    ह्रदय

भीतर तक खुश किसी  का।

जुबां से नहीं दिल  से  आप

अपना जीत  कर     बनायें।।


जान लीजिए कि   दिल का

दरवाजा अंदर से खुलता है।

जो दिया आपने वही     जा

कर ही   मिलता जुलता  है।।

जुबां से हो गिला    शिकवा 

पर दिलों में मैल  नहीं आये।

दिमाग से न   दिल से निभा

रिश्ता ही जाकर खिलता है।।

एस के कपूर श्री हंस

*बरेली।।*

मोब।।          9897071046

                   8218685464

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...