प्रेमी! पागल… (सजल)
प्रेमी! पागल मत बन जाना।
फूँक-फूँक कर कदम बढ़ाना।।
सभी नहीं दुनिया में प्रेमी।
धीरे चल चींटी बन जाना।।
जग विश्वास खो रहा अब है।
रुक-रुक करके पैर जमाना।।
धोखेबाज खड़े चौतरफा।
आगे-पीछे होते जाना।।
अति विश्वास कभी मत करना।
सोच-समझकर आगे जाना।।
वफादार का अब टोटा है।
कभी न जल्दी हिल-मिल जाना।।
मकड़जाल है विछा चतुर्दिक।
कभी जाल में फँस मत जाना।।
माना कि तुम प्रेम रसिक हो।
फिर भी सँभल-सँभल कर जाना।।
कभी न सोचो सभी प्रेममय।
कभी न झाँसे में तुम आना।।
पहले लेना घोर परीक्षा।
ठोक-बजाकर चित्त चढ़ाना।।
कामुक घूम रहे पशु बनकर।
इनसे पीछा सदा छुड़ाना।।
कामवासना प्रेम नहीं है।
इस रहस्य को सतत जानना।।
प्रेमी को बस प्रेम सहहिये।
वह तो आशिक़ प्रेम दीवाना।।
प्रेम दीवाने राधे-कृष्णा।
इसी भाव को सदा जगाना।।
सत्व भाव में सत्य प्रेम है।
सात्विक प्रेमी को अपनाना।।
ड़ॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें