दिनांकः २४.०१.२०२१
दिवसः रविवार
विधाः दोहा
विषयः बेटियाँ
शीर्षकः👰 बेटी है शृङ्गार जग🤷🏻
जीवन की पहली किरण , पड़ी मनुज इह लोक।
बेटी बहना माँ कहो , पत्नी बन हर शोक।।१।।
प्रथम सृष्टि की अरुणिमा , करती जग आलोक।
निर्भय नित सबला करो , बिन बाधा या रोक।।२।।
बढ़ा मनोबल बेटियाँ , करो साहसी धीर।
पढ़ा लिखा समरथ करो , निर्माणक तकदीर।।३।।
ममता समता प्रीति की , तनया नित आगार।
भरी सदा करुणा दया , खुशियाँ दे संसार।।४।।
गेह रोशनी बेटियाँ , दीपशिखा सम्मान।
परहित रत मेधाविनी , परकीया बन शान।।५।।
सरला सहजा मिहनती , चढ़ तनया सोपान।
रचे कीर्ति संसार को , पाती हर अरमान।।६।।
शक्तिशालिनी बेटियाँ , भरो मनसि उत्साह।
रक्षण नित बेटी करो , पूर्ण करो हर चाह।।७।।
सींचो स्नेहिल बेटियाँ , बिना किसी मनभेद।
जीवन हो हर्षित सुलभ , करो नहीं उच्छेद।।८।।
मानक कुल की बेटियाँ , विधलेखी उपहार।
जननी भगिनी बेटियाँ , महाशक्ति अवतार।।९।।
बेटी है शृङ्गार जग , रखो लाज सम्मान।
साधन बन उत्थान का , नार्यशक्ति वरदान।।१०।।
धीर वीर योद्धा वतन , शिक्षित ज्ञान विज्ञान।
कुशला नित नेत्री वतन , अभिनेत्री कृति गान।।११।।
लालटेन प्रतिबिम्ब नित , दर्शाती अरमान।
बनी सदा उन्नत पथी , बेटी कुल अभिमान।।१२।।
संकल्पित यायावरित , सहने को संघर्ष।
हर बाधा को पार कर , चढ़े सुता उत्कर्ष।।१३।।
खिले निकुंज कीर्ति प्रभा ,बने चारु निशि सोम।
लघु जीवन अनमोल धन,सुता विहग यश व्योम।।१४।।
कविः डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली
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