डॉ. राम कुमार झा निकुंज

 दिनांकः २४.०१.२०२१

दिवसः रविवार

विधाः दोहा

विषयः बेटियाँ 

शीर्षकः👰 बेटी है शृङ्गार जग🤷🏻


जीवन    की   पहली  किरण , पड़ी  मनुज इह लोक।

बेटी   बहना  माँ     कहो , पत्नी   बन     हर    शोक।।१।।


प्रथम    सृष्टि   की  अरुणिमा , करती जग  आलोक।

निर्भय   नित   सबला  करो , बिन  बाधा    या  रोक।।२।।


बढ़ा      मनोबल      बेटियाँ , करो   साहसी     धीर।

पढ़ा   लिखा   समरथ    करो , निर्माणक    तकदीर।।३।।


ममता    समता  प्रीति   की ,  तनया   नित   आगार।

भरी   सदा    करुणा   दया ,  खुशियाँ    दे    संसार।।४।।


गेह      रोशनी       बेटियाँ  , दीपशिखा       सम्मान।

परहित     रत      मेधाविनी , परकीया    बन    शान।।५।।


सरला    सहजा    मिहनती , चढ़     तनया   सोपान।

रचे      कीर्ति    संसार   को , पाती   हर     अरमान।।६।।


शक्तिशालिनी      बेटियाँ , भरो     मनसि     उत्साह।

रक्षण    नित    बेटी    करो , पूर्ण   करो   हर   चाह।।७।।


सींचो   स्नेहिल     बेटियाँ , बिना     किसी   मनभेद।

जीवन     हो    हर्षित   सुलभ , करो   नहीं   उच्छेद।।८।।


मानक   कुल    की     बेटियाँ , विधलेखी   उपहार।

जननी    भगिनी    बेटियाँ ,  महाशक्ति     अवतार।।९।।


बेटी    है    शृङ्गार   जग , रखो    लाज    सम्मान। 

साधन  बन    उत्थान   का , नार्यशक्ति     वरदान।।१०।।


धीर   वीर  योद्धा  वतन , शिक्षित    ज्ञान  विज्ञान।

कुशला नित नेत्री वतन , अभिनेत्री   कृति    गान।।११।। 


लालटेन    प्रतिबिम्ब     नित , दर्शाती   अरमान।

बनी   सदा   उन्नत  पथी ,   बेटी  कुल अभिमान।।१२।।


संकल्पित      यायावरित ,  सहने    को    संघर्ष।

हर   बाधा  को     पार कर ,  चढ़े  सुता  उत्कर्ष।।१३।।


खिले निकुंज कीर्ति प्रभा ,बने चारु निशि  सोम।

लघु जीवन अनमोल धन,सुता विहग यश व्योम।।१४।। 


कविः डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

रचनाः मौलिक(स्वरचित)

नई दिल्ली

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