सुषमा दीक्षित शुक्ला

 आप सुनो तो 


आप सुनो तो तान छेड़ दूँ,

मन के गीत सुनाने को।

रूह हमारी भटक रही थी,

दिल का हाल बताने को।


बंजारों से दिन थे मेरे,

जोगन जैसी थी रातें।

अब आए हो कभी न जाना,

कर लूँ सब दिल की बातें।


बहुत दिनों के बाद मिले हो,

खोया प्यार निभाने को।

आप सुनो तो...


प्यार मेरा था जनम जनम का,

तुम थे मेरे दीवाने।

मैं शमां थी बुझने वाली,

अब आए हो परवाने।


आओ फिर से दोहरा दें हम,

मधुर मिलन के गाने को।

आप सुनो तो...


मैं चातक सी तड़प रही थी,

मृगतृष्णा में भटक रही थी।

हुई अकेली थी मैं बिल्कुल,

प्रीतम तुम बिन बिलख रही थी।


आज कहाँ से आन मिले तुम,

सोयी प्रीत जगाने को।

आप सुनो तो...


फिर बहार आई जीवन में,

खुशियों ने पैग़ाम दिया।

लौटा है वो प्रीतम मेरा,

फुलवा जिसने नाम दिया।


अगर कहीं ख़्वाब ये हुआ तो,

चाहूँ मैं मर जाने को।

आप कहो तो तान छेड़ दूँ ,

मन के गीत सुनाने को।


सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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