दयानन्द त्रिपाठी दया

 पौष मास में स्वागतम्, रवि करते हैं धनु परित्याग।

मकर राशि के अतिथि रवि, करते  हैं  पर्व सुराग।।


नववर्ष   का   नव  पर्व  है, मकर  संक्रांति   है   आज।

रहे चतुर्दश मास जनवरी, होय कभी पंच्चदश है राज़।।


बिहू, पोंगल, लोहड़ी, गंगा में स्नान  संग  मनें त्यौहार।

कहीं मनें तिला संक्रान्ति, उड़ें पतंगें रंग बिरंग हजार।।


मनभावन हरियाली फैली, नई फसल का लेवें स्वाद।

छायी खुशियां चहुंओर है, मिट  जायें  सारे  विषाद।।


खिचड़ी चटनी है बनी, है संग नींबू, मूली, दही अचार।

फैला मधुरिम संदेश जगत में, हो मानवता का व्यवहार।।


रहे एकता हिन्दुस्तान में, करें प्रगति सबका हो कल्याण।

सुख-दु:ख में सहभागी रहें, मिट जाय रोग-दोष हो अंगत्राण।।


कवि दया दें बधाई संग शुभकामना,  स्वीकारें सब  प्राण।

देशभक्ति  से  लबरेज़ सबजन, हो  मानव  में  भावप्राण।।


       दयानन्द_त्रिपाठी_दया



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