विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल 


ये चंद रोज़ की यारी ग़ज़ब की यारी लगे

तमाम ज़ीस्त तेरे  साथ ही  गुज़ारी लगे 


हरेक शय में ही आती नज़र सनम तुम हो 

तुम्हारे प्यार की अब तक चढ़ी ख़ुमारी लगे


न देखो ऐसी नज़र से कि जां निकल जाये

हमारे दिल को ये चुभती हुई कटारी लगे 


तुम्हारे अदना इशारे पे नाच उठती है

हमारी ज़ीस्त भी हमको तो अब तुम्हारी लगे 


शदीद ग़म है जुदाई का इस क़दर हमदम

मुझे  हयात की तारीकियों पे भारी लगे 


यक़ीन कैसे करूँ दोस्ती पे मैं उनकी 

ये आजकल की जो यारी है दुनियादारी लगे 


ज़ुबां ख़मोश न रख्खें तो क्या करें *साग़र* 

हरेक बात बुरी उनको जब हमारी लगे 


🖋️विनय साग़र जायसवाल

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...