अंतिम इच्छा (दोहे)
अंतिम इच्छा है यही, मिले यही परिवार।
यही मिलें माता-पिता, यही मिले घर-द्वार।।
यही मिलें भाई-बहन, मिले यही ससुराल।
यही मिले पत्नी सहज, बने मधुर रखवाल।।
मिले मुझे बेटा यही, मिले पौत्र दो रत्न।
पुत्रवधू शीतल मिले,बिना किये कुछ यत्न।।
यही गाँव मुझको मिले, यह अति सुंदर धाम।
इसी ग्राम में बैठकर, जपूँ सदा हरि नाम।।
माँ सरस्वती नित करें,मेरे उर में वास।
लिखता रहूँ सुलेख मैं, रहकर माँ के पास।।
रामेश्वर की शरण में, बैठ जपूँ शिवराम।
महामंत्र की गूँज से, मिले मुझे विश्राम।।
सन्त समागम हो सदा, युगल-बीहारी साथ।
नागा बाबा की कृपा ,से मैं बनूँ सनाथ।।
डीहबाबा छाया तले, रहूँ सदा मैं बैठ।
आध्यात्मिक परिक्षेत्र में, होय नित्य घुसपैठ।।
अंतिम इच्छा बलवती, हो आध्यात्मिक राग।
बाँधे सारे लोक को , मेरे मन का ताग।।
मेरे मन के दोष का, शमन करें भगवान।
मैं कबीर बनकर चलूँ, मिले राम का ज्ञान।।
महापुरुष आदर्श हों, जागे धार्मिक भाव।
ममता करुणा प्रेम का, हो मन में सद्भाव।।
मानवता के शिखर पर, करूँ बैठकर खेल।
अंतिम चाहत है यही, रखूँ सभी से मेल।।
मेरे पावन हृदय में, बसे सकल संसार।
ऐसा मुझे प्रतीत हो, सारा जग परिवार।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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