डॉ० रामबली मिश्र

 शिक्षा-दीक्षा शून्य      ( दोहे)


शिक्षा-दीक्षा शून्य में,दीख रहा हैवान।

मूर्खों जैसा बोलता, नीच अधम शैतान।।


संस्कार के नाम पर, दिखता रेगिस्तान।

करता ऐसा काम है, जैसे नीचिस्तान।।


चोरकट नम्बर एक का, है चरित्र से हीन।

अहंकार है देह का, शिष्टाचार विहीन।।


विद्वानों को देखकर, गाली देत अशिष्ट।

कहता अपने आप को, परम कुलीन विशिष्ट।।


भैंसा जैसा घूमता, मारत मुँह चहुँओर।

ईर्ष्या करता सन्त से, पकड़ घृणा की डोर।।


कुत्तों जैसा भूँकता, करत निरर्थक बात।

क्या पायें क्या लूट लें, यही सोच दिन-रात।।


मन में रहता पाप है, प्रति क्षण कुटिल विचार।

बने हुये हैं मूल्य बस, अनाचार व्यभिचार।।


सत्संगति से है घृणा, है कुसंग से प्रीति।

कुत्सित भावों से लदा, करता सदा अनीति।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...