गीत
नयनों में वही समाया है। जिसने संसार रचाया है।।
टुटे है भ्रम के ताजमहल
हैं सुस्मृतियों में चरण कमल |
छूकर जीवन भी हुआ विमल
हर अंधकार घबराया है
नयनों में वही समाया है
जिसने संसार रचाया है |।
स्वाँसो ने कितने किये भजन
आंलिगन करती सुरभि पवन
हर क्षण होता है महामिलन
फिर नवप्रभात मुस्काया है |।
नयनों में वही समाया है
जिसने संसार रचाया है |
यह मुझको भी अनुमान नहीं
है कहाँ -कहाँ अनुदान नहीं
इस प्रश्न से अब व्यवधान नहीं
क्या खोया है क्या पाया है ।।
नयनों में वही समाया है ।
जिसने संसार रचाया है |
है नाव फँसी भवसागर में
जो बैठा है उर -गागर में
है आस उसी नटनागर में
उसने ही सदा बचाया है ।।
नयनों में वही समाया है
जिसने संसार रचाया है |
हर प्रश्न अधूरा -पौन यहाँ
बैठा है छुप कर कौन यहाँ
हर आहट भी है मौन यहाँ
यह किस अनन्त की छाया है ।।
नयनों में वही समाया है
जिसने संसार रचाया है
यह कैसी प्रेम -पिपासा थी
हर आशा बनी निराशा थी
फिर भी मन में जिज्ञासा थी
क्या उस विराट की माया है |।
नयनों में वही समाया है
जिसने संसार रचाया है |
साग़र है इतनी सच्चाई
जब आशा ने ली अंगडाई
हर ओर खड़ी थी तन्हाई
जीता मन भी पछताया है |।
नयनों में वही समाया है
जिसने संसार रचाया है |
विनय साग़र जायसवाल
14/8/2001
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