डॉ० रामबली मिश्र

 अनुशासन चालीसा


जय जय जय जय जय अनुशासन।

हो तेरा केवल अभिवादन।।

पूजे तुझको सारी दुनिया।

उर में लेकर पावन मनिया।।


हो तेरा ही नाम जगत में।

तेरा वंदन नित्य स्वगत में।।

तेरा हो नियमित गुणगायन।

तुझसे हो दिल में मनसायन।।


रहो तुम्हीं बैठे अधरों पर।

हो प्रभाव तेरा वधिरों पर।।

तुम बैठे मन में मुस्काओ।

नियमित सुंदर गेह सजाओ।।


अनुशासन में सारा जग हो।

नियमविरुद्ध नहीं कोई हो।।

सभी करें विश्वास सभी में।

देखें ईश्वर को नियमों में।।


अनुशासन ही सदाचार हो।

सबके प्रति सम्मान-प्यार हो।।

सतत सहज सत्कार भाव हो।

सबके ऊपर  मधु प्रभाव हो।।


करें सभी नियमों का पालन।

प्रिय नियमों का हो संचालन।।

सभी करें सम्मान नियम का।

परिचय दें सब अति संयम का।।


रहें सभी जन सदा नियंत्रित।

जीवन हो अतिशय मर्यादित।।

जीवन शैली रहे प्रतिष्ठित।

मन के सारे भाव संगठित।।


शिष्ट आचरण उर में जागे।

दुष्ट कामना मन से भागे।।

सुंदर कृत्यों का आलय हो।

अनुशासन का देवालय हो।।


नारा लगे शुभद शासन का।

शुभ्र प्रशासन के आवन का।।

अनुशासन हो धर्म समाना।

नहीं करे कोई मनमाना।।


सबका जीवन अनुशासित हो।

सहज प्रकाशित आशान्वित हो।।

निर्मल धवल दिव्य उज्ज्वल हो।

मन में सौम्य विचार प्रबल हो।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801



सत्ता का लोभ       (दोहे)


सत्ता पाने के लिये,मानव बहुत बेचैन।

इसकी खातिर मनुज नित, अति चिंतित दिन-रैन।।


तिकड़मबाजी नित करत, चलता सारी चाल।

सत्ता पाने के लिये, रहता, सदा बेहाल।।


सत्ताधारी का करत, सत्ताहीन विरोध।

सत्ता पाने के लिये, करता सारे शोध।।


सत्ता पा कर मनुज खुद, को समझत भगवान।

सत्ता से सामान्य जन, बन जाता धनवान।।


सत्ता में मद है भरा, जिसको पी भरपूर।

हो मदांध नित घूमता, सत्ताधारी क्रूर।।


सत्ता-लोभ सता रहा, हर मानव को आज।

चाह रहा बनना मनुज, दैत्यराज यमराज।।


मानव बनने का नहीं, रह जाता कुछ अर्थ।

सत्ता बिन सब कुछ लगत, फीका-फीका व्यर्थ।।


सत्ता की कुर्सी पकड़, चिपका सत्तावान।

खूनी पर्व मना रहा, सत्ता का शैतान।।


मायावी सत्ता प्रबल, करती बहुत  अनर्थ।

फिसले कभी न हाथ से, इसी तथ्य का अर्थ।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801



रामचरणरज….  (चौपाई)


रामचरणरज का अनुरागी।

तीन लोक में अति बड़भागी।।

अति विशाल हिम गहन समंदर।

महा पुरुष अति पावन सुंदर।।


रामचरणरज में रघुनंदन।

करो सदा उनका नित वंदन।।

ले रज अपने शीश चढ़ाओ।

नियमित कृपा राम की पाओ।।


राम समान नहीं कोई है।

यह दुनिया फिर भी सोयी है।।

राम चरित्र विशाल अनंता।

आजीवन गावत हर संता।।


अति उदारवादी रघुनायक।

भक्तजनों के सदा सहायक।।

उच्चादर्श परम वैरागी।

धर्मपरायण जनानुरागी।।


समदर्शी निःस्वार्थी रघुबर।

धर्मपाणिनि  ज्ञान धुरंधर।।

इच्छारहित उदासमना हैं।

अनुपम लोकातीत जना हैं।।


रामचन्द्र को जो भजता है।

उसको शिव का पद मिलता है।।

धन्य वही मानव इस जग में।

ध्यानावस्थित जो प्रभु पग में।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

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