सब अपने। (तिकोनिया छंद)
सब अपने हैं,
भाव बने हैं।
प्रिय अंगने है।।
सर्व बनोगे,
गगन दिखोगे।
सिंधु लगोगे।।
बनो अनंता,
दिख भगवंता।
शिवमय संता।।
गले लगाओ,
क्षिति बन जाओ।
प्रेम बहाओ।।
अश्रु पोंछना।
दुःख हर लेना।
प्रियतम बनना।।
दुःख का साथी,
सबका साथी।
जगत सारथी।।
पंथ बनोगे,
स्वयं चलोगे।
धर्म रचोगे।।
उत्तम श्रेणी,
सदा त्रिवेणी।
पावन वेणी।।
सबको उर में,
अंतःपुर में।
हरिहरपुर में।।
सबको ले चल,
पावन बन चल।
मानव केवल।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511