दिव्य भाव चालीसा
दिव्य भाव की करो कामना।
कर ईश्वर से यही याचना।।
दिव्य भाव अति पावन सरिता।
बूँद-बूँद में अति प्रिय कविता।।
देव शक्ति है दिव्य भाव में।
नैसर्गिकता सहज चाव में।।
दिव्य भाव में अमृत सागर।
दिव्य भाव प्रिय अमृत नागर।।
दिव्य भाव को पवन समझना।
सदा धर्मरत शीतल बहना।।
यह मानवतावादी पावन।
ब्रह्मलोक तक सहज लुभावन।।
देव मनुज सबका हितकारी।
दिव्य भाव ही प्रेम पुजारी।।
ब्रह्म विचरते दिव्य भाव में।
निर्विकार नित मधु स्वभाव में।।
दिव्य भाव के ब्रह्म रचयिता।
इसमें निर्मलता शुभ शुचिता।।
भरा हुआ जो दिव्य भाव से।
आच्छादित वह सुखद छाँव से।।
जिसके मन में गंगा बहतीं।
उस में दिव्य भावना रहती।।
जिस को सद्विवेक मनभावन।
उस में दिव्य भाव का आवन।।
अडिग प्रेम में दिव्य भावना।
प्राणि मात्र की शुभद कामना।।
जिस के भीतर सत्व प्रीति है।
दिव्य भावनामयी रीति है।।
दिव्य भाव में नित्य दान है।
नैतिकता का सत्य ज्ञान है।।
यह प्रिय दाता सहज सन्त सम।
देव तुल्य यह भाव परम नम।।
दिव्य भाव है सब से ऊपर।
बाधाओं से मुक्त उच्चतर।।
यह निसर्ग का देवालय है।
शुभग मनोहर विद्यालय है।।
पावन मन का भाव यही है।
शुद्ध हृदय का गाँव यही है।।
सकल विश्व मैत्री का देशा।
दिव्य भाव सर्वोच्च विशेषा ।।
दोहा-
दिव्य भाव के धाम में,ईश्वर का सहवास।
दिव्य भावनायुक्त नर,सदा ईश के पास।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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