डॉ० रामबली मिश्र

 तुझे देखकर…    ( वीर छंद)


कभी न लगना इतना क्रूर,

       तुझे देखकर डर लगता है।

हो जाता मैं चकनाचूर,

      जब भी तेरी छाया पड़ती।

चल जाओ तुम मुझसे दूर ,

      कभी न अपना रूप दिखाना।

क्यों रहते हो मेरे पास,.    

      कहीं निकल जा मुझे छोड़ कर।

नहीं चाहिये तेरा साथ,

      मुझे अकेला ही रहने दो।

मुझे अकेले में आनंद,

      सदा मिलेगा इसे समझ लो।

मुझे चाहिये भय से मुक्ति,

        निर्भयता ही मेरा जीवन।

तेरी छवि में डर का वास,

      अब मत परेशान कर मुझको।

मुझे चाहिये अब एकांत,

      यही जगह सर्वोत्तम सुखकर।

लेंगे केवल प्रभु का नाम,

      सिर्फ साथ में ईश रहेंगे।

मुझे चाहिये सुख-विश्राम,

      केवल ईश भजन से मतलब।

मिट जायेगा भय का भाव,

      जब ईश्वर का दर्शन होगा।

नहीं चाहिये भय का साथ,

      निर्भयता का सावन होगा।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

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