मकरसंक्रांति
विधा छन्दमुक्त
परिवर्तन नियम प्रकति का
बदलती गति दिनकर की
प्रवेश करते मकर राशि में
हो रहा नवल प्रभात
मनाते संक्रांति त्योहार।
लगाते डुबकी आस्था से
करते जप अर्चन ध्यान
वन्दना करते ईश्वर से
करते दान पुण्य काज
मनाने संक्रांति त्योहार।
तिल गुड़ सोंधी सुवास
चुड़ा दही खिचड़ी अचार
खाते मिलजुल कर साथ
हृदय भर उमंग उल्लास
मनाते संक्रांति त्योहार।
प्रारम्भ हुँयेफिर से कार्य
शुभ मुहूर्त शुभ काज
रंग बिरंगी पंतगों से
आच्छादित नभ आकाश
उड़ती पंतगे छुरही आकाश
मनाते संक्रांति त्योहार।
दिवस की मरजाद बढ़ी
ठंड शीत सिमटने लगी
आम्र मौर देती आगाज
मन्द.मन्द बहती पवन
दे रही सन्देंश यही
झूमता आ रहा बंसत
संक्रांति , पोंगल लोहड़ी
बीहू अनेक रंग रूप नाम
मिलजुल कर सब साथ साथ
मनाते संक्रांति त्योहार।।
मन्शा शुक्ला
अम्बिकापुर
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