ग़ज़ल--
अब भी रंग-ए-हयात बाक़ी है
हुस्न की इल्तिफ़ात बाक़ी है
आ गये वो ग़रीबख़ाने तक
उनमें पहले सी बात बाक़ी है
चंद लम्हे अभी ठहर जाओ
और थोड़ी सी रात बाक़ी है
तोड़ सकता नहीं वो दिल मेरा
उसमें इतनी सिफ़ात बाक़ी है
हाँ यक़ी है मिलेंगे हम दोनों
पार करना फ़रात बाक़ी है
डर नहीं है हमें अंधेरों का
रौनक़-ए-कायनात बाक़ी
सारे मोहरे सजा लिए हमने
उनपे होने को मात बाक़ी है
यह ख़ुशी का पयाम है *साग़र*
बस गमों की वफ़ात बाक़ी है
🖋️विनय साग़र जायसवाल
हयात-जीवन ,ज़िंदगी
इल्तिफ़ात-कृपा ,दया ,अनुग्रह
सिफ़ात-विशेषता ,गुण ,
फ़रात-नदी का नाम
कायनात-दुनिया
पयाम-संदेश
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