डॉ० रामबली मिश्र

 धैर्य चालीसा


सदा धैर्य की दिव्य विजय हो।

जय हो जय हो धैर्य अजय हो।।

धैर्य पंथ पर जो चलता है।

वही सफल मानव बनता है।।


संकट में धीरज धारण कर।

सब्र करो आनंद किया कर।।

धीरज ही संकटमोचन है।

महावीर हनुमानचरण है।।


करो धैर्य की नित्य प्रशंसा।

सदा धैर्य की हो अनुशंसा।।

धैर्य-धारणा सफल बनाती।

मानव को सुख-शांति दिलाती।।


सीखो आत्मनियन्त्रित रहना।

मन-विकार से दूरी रखना।।

सदा सन्तुलन सुखी बनाता।

सारे दुःख को मार गिराता।।


मन में दुःख-संकट मत पालो।

इनको मन से सतत निकालो।।

अच्छी सोच रखो नित मन में।

भय को देखो नहीं सपन में।।


द्वंद्वरहित अवसाद रहित बन।

दुःख दरिया के पार रहे मन।।

दुःख की कभी न चिंता करना।

ईश भजन नित करते रहना।।


बेसब्री का त्याग करो नित।

बन करके चलना इन्द्रियजित।।

सदा मारते रह दानव को।

मन में रहने दो मानव को।।


विचलन का तुम नाम न लेना।

स्थिरता को छोड़ न देना।।

मन में सुंदर विंदु बनाओ।

सदा सहजमय सिंधु नहाओ।।


बनकर चलते रहो साहसी।

विचलित हो मत बनो आलसी।।

अंधकार में कभी न फँसना।

आशालोक विचरते रहना।।


आशावादी बनकर जीना।

निश्चिंता की हाला पीना।।

निर्भयता का परिचय देना।

उद्वेगों से बचते रहना।।


दोहा:

विपदा में नित धैर्य से,करते रहना प्रीति।

अवसादों से मुक्ति की, यह अति सुंदर नीति।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

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