*दोहा-लेखन*
विनय
विनय सदा करते रहें,प्रभु का रखकर ध्यान।
निश्चित जग में यश बढ़े, मिले हमें सम्मान।।
काल
देश-काल सँग पात्र का,रख विचार कर काम।
मिले सदा फल मधुर जग,सुंदर हो परिणाम।।
भावना
जिसकी जैसी भावना,वैसी उसकी सोच।
प्रभु की छवि पाषाण में,दिखती निःसंकोच।
शब्द
अक्षर-अक्षर मिल बने,किसी शब्द का रूप।
शब्द करे स्पष्ट जग,क्या है ज्ञान अनूप??
दर्शन
दर्शन-पूजन से मिले,परम आत्मिक तोष।
प्रभु की महती कृपा से,बढ़े ज्ञान-धन-कोष।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372के
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें