डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-8

मिलि सभ सासु सियहिं नहवाईं।

भूषन-बसन दिव्य पहिराईं ।।

       बामांगी सीता बड़ सोहैं।

       चढ़े बिमान ब्रह्म-सिव मोहैं।।

गुरु बसिष्ठ मँगाइ सिंहासन।

मंत्र उचारि दीन्ह प्रभु आसन।।

       राम-सिंहासन सुरुज समाना।

        करै जगत बहु-बहु कल्याना।।

देखि राम-सिय बैठि सिंहासन।

जय-जय करहीं सुरन्ह-ऋसीगन।।

       प्रथम तिलक बसिष्ठ गुरु कीन्हा।

        बाद असीस द्विजन्ह सभ दीन्हा।।

सोभा दिब्य निरखि सभ माता।

करहिं आरती प्रभु सुख-दाता।।

      सभे भिखारी भे धनवाना।

       पाइ क दान,खाइ पकवाना।।

देखि सिंहासन पे रघुराई।

सुरन्ह दुंदुभी मुदित बजाई।।

      भरत-शत्रुघन-लछिमन भाई।

       अंगद-हनुमत अरु कपिराई।।

साथ बिभीषन लइ धनु-सायक।

छत्र व चवँर-कटार अधिनायक।।

       सोहैं रघुबर सँग सभ लोंगा।

       हरषहिं सुख लहि अस संजोगा।।

सीता सहित भानु-कुलभूषन।

पहिरि पितंबर-भूषन नूतन।।

       लगहिं कोटि छबि-धाम अनंगा।

        साँवर तन,धनु-बान-निषंगा।।

राम-रूप अस संकट-मोचन।

बाहु अजान व पंकज लोचन।।

       अस प्रभु-रूप बरनि नहिं जाए।

        राम-रूप अस संकर भाए।।

दोहा-धारि भेष तब भाँट कै, आए बेदहिं चारि।

         करन लगे प्रभु-वंदना,सुंदर बचन उचारि।।

                         डॉ0हरि नाथ मिश्र

                              9919446372

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