*सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-8
मिलि सभ सासु सियहिं नहवाईं।
भूषन-बसन दिव्य पहिराईं ।।
बामांगी सीता बड़ सोहैं।
चढ़े बिमान ब्रह्म-सिव मोहैं।।
गुरु बसिष्ठ मँगाइ सिंहासन।
मंत्र उचारि दीन्ह प्रभु आसन।।
राम-सिंहासन सुरुज समाना।
करै जगत बहु-बहु कल्याना।।
देखि राम-सिय बैठि सिंहासन।
जय-जय करहीं सुरन्ह-ऋसीगन।।
प्रथम तिलक बसिष्ठ गुरु कीन्हा।
बाद असीस द्विजन्ह सभ दीन्हा।।
सोभा दिब्य निरखि सभ माता।
करहिं आरती प्रभु सुख-दाता।।
सभे भिखारी भे धनवाना।
पाइ क दान,खाइ पकवाना।।
देखि सिंहासन पे रघुराई।
सुरन्ह दुंदुभी मुदित बजाई।।
भरत-शत्रुघन-लछिमन भाई।
अंगद-हनुमत अरु कपिराई।।
साथ बिभीषन लइ धनु-सायक।
छत्र व चवँर-कटार अधिनायक।।
सोहैं रघुबर सँग सभ लोंगा।
हरषहिं सुख लहि अस संजोगा।।
सीता सहित भानु-कुलभूषन।
पहिरि पितंबर-भूषन नूतन।।
लगहिं कोटि छबि-धाम अनंगा।
साँवर तन,धनु-बान-निषंगा।।
राम-रूप अस संकट-मोचन।
बाहु अजान व पंकज लोचन।।
अस प्रभु-रूप बरनि नहिं जाए।
राम-रूप अस संकर भाए।।
दोहा-धारि भेष तब भाँट कै, आए बेदहिं चारि।
करन लगे प्रभु-वंदना,सुंदर बचन उचारि।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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