डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-9

निरगुन-सगुन राम कै रूपा।

भूप सिरोमनि राम अनूपा।।

     निज भुज-बल प्रभु रावन मारे।

     सकल निसाचर कुल संहारे।।

मनुज-रूप लीन्ह अवतारा।

अघ-बोझिल महि-भार उतारा।।

    जय-जय-जय सिय-राम गुसाईं।

     सरनागत-रच्छक,जग-साईं ।।

माया बस मग मा जे भटकहि।

नर-सुर-रच्छक जे मग अटकहि।।

    नाग-चराचर जे जग आहीं।

    नाथहि कृपा जबहिं ते पाहीं।।

भवहिं मुक्त ते तीनहुँ तापा।

जगत-बिदित नाथ-परतापा।।

      मिथ्या ग्यानी अरु अभिमानी।

       नाथ-कृपा-महिमा नहिं जानी।।

ताकर होहि अधोगति लोका।

होंहिं भले ते देव असोका।।

      तजि अभिमान भजै जे रामा।

       ताकर कष्ट हरैं श्रीरामा ।।

जिन्ह चरनन्ह कहँ सिव-अज पूजहिं।

बंदि-बंदि जिन्ह सुर-मुनि छूवहिं ।।

     छुइ चरनन्ह जिन्ह उतरी गंगा

      छुवत जिनहिं भइ नारि उमंगा।।

अस चरनन्ह कर करि अभिवादन।

मिलहिं अनंतइ सुख मन-भावन।।

      बेद कहहिं प्रभु बिटप समाना।

      मूल अब्यक्त जासु जग जाना।।

हैं षट कंध,त्वचा तरु चारी।

साखा जासु पचीसहि भारी।।

     पर्ण असंख्य सुमन तरु अहहीं।

      मीठा-खट्टा दुइ फल लगहीं।।

लता एक आश्रित तरु आहे।

फूलत नवल पल्लवत राहे।

      अस तरु,बिस्व-रूप भगवाना।

      नमन करहुँ अस तरु बिधि नाना।।

ब्रह्म अजन्म अद्वैत कहावै।

अनुभव गम्यहि बेद बतावै।

      तजि बिकार मन-बचन-कर्म तें।

      करि गुनगान सगुन ब्रह्म तें ।।

जे जन करहीं प्रभू-बखाना।

पावैं करुनाकर गुनखाना।।

दोहा-अस बखान करि राम कै, गए बेद सुरलोक।

         तुरत तहाँ सिव आइ के,बिनती करहिं असोक।

                            डॉ0हरि नाथ मिश्र

                                9919446372

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