*सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-9
निरगुन-सगुन राम कै रूपा।
भूप सिरोमनि राम अनूपा।।
निज भुज-बल प्रभु रावन मारे।
सकल निसाचर कुल संहारे।।
मनुज-रूप लीन्ह अवतारा।
अघ-बोझिल महि-भार उतारा।।
जय-जय-जय सिय-राम गुसाईं।
सरनागत-रच्छक,जग-साईं ।।
माया बस मग मा जे भटकहि।
नर-सुर-रच्छक जे मग अटकहि।।
नाग-चराचर जे जग आहीं।
नाथहि कृपा जबहिं ते पाहीं।।
भवहिं मुक्त ते तीनहुँ तापा।
जगत-बिदित नाथ-परतापा।।
मिथ्या ग्यानी अरु अभिमानी।
नाथ-कृपा-महिमा नहिं जानी।।
ताकर होहि अधोगति लोका।
होंहिं भले ते देव असोका।।
तजि अभिमान भजै जे रामा।
ताकर कष्ट हरैं श्रीरामा ।।
जिन्ह चरनन्ह कहँ सिव-अज पूजहिं।
बंदि-बंदि जिन्ह सुर-मुनि छूवहिं ।।
छुइ चरनन्ह जिन्ह उतरी गंगा
छुवत जिनहिं भइ नारि उमंगा।।
अस चरनन्ह कर करि अभिवादन।
मिलहिं अनंतइ सुख मन-भावन।।
बेद कहहिं प्रभु बिटप समाना।
मूल अब्यक्त जासु जग जाना।।
हैं षट कंध,त्वचा तरु चारी।
साखा जासु पचीसहि भारी।।
पर्ण असंख्य सुमन तरु अहहीं।
मीठा-खट्टा दुइ फल लगहीं।।
लता एक आश्रित तरु आहे।
फूलत नवल पल्लवत राहे।
अस तरु,बिस्व-रूप भगवाना।
नमन करहुँ अस तरु बिधि नाना।।
ब्रह्म अजन्म अद्वैत कहावै।
अनुभव गम्यहि बेद बतावै।
तजि बिकार मन-बचन-कर्म तें।
करि गुनगान सगुन ब्रह्म तें ।।
जे जन करहीं प्रभू-बखाना।
पावैं करुनाकर गुनखाना।।
दोहा-अस बखान करि राम कै, गए बेद सुरलोक।
तुरत तहाँ सिव आइ के,बिनती करहिं असोक।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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