*सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-10
रमारमन प्रभु रच्छा करऊ।
सरनागत-रच्छक तुम्ह अहऊ।।
भुजा बीस रावन-दस सीसा।
राच्छस सकुल हतेउ जगदीसा।।
प्रभु तुम्ह अहहु अवनि-आभूषन।
धनु-सायक-निषंग तव भूषन ।।
भानु क किरन-प्रकास समाना।
नाथ तेज तव धनु अरु बाना।।
तुमहिं करत निसि-तम कै नासा।
मद-ममता अरु क्रोध बिनासा।।
जे नहिं करहिं प्रीति पद-पंकज।
रहहिं मलिन-उदास ते सुख तज।।
रुचिकर लगै जिनहिं प्रभु-लीला।
मान-लोभ-मद प्रति मन ढीला ।।
सो साँचा सेवक प्रभु होवै।
करै पार भव-सिंधु,न खोवै।।
अरु बिचरै जग संत की नाई।
बिनू मान-अपमान लखाई ।।
राम क सत्रु अहहि अभिमाना।
जनम-मरन औषधी समाना।।
नाथ सील-गुन-कृपा-निकेता।
राम महीप दीन जन-चेता।।
करउ नाथ रच्छा तुम्ह मोरी।
देवहु अचल भगति मों तोरी।।
दैहिक-दैविक-भौतिक तापा।
राम क कथा हरै परितापा।।
सुनै जे छाँड़ि कथा आसक्ती।
ओहिका मिलै मुक्ति अरु भक्ती।।
राम-कथा बिबेक दृढ़ करई।
बिरति-भगति प्रबलहि बहु भवई।।
मोह क नदी पार जन जावहिं।
चढ़ि के तुरत भगति के नावहिं।।
दोहा-निसि-बासर तहँ अवधपुर,कथा राम कै होय।
मगन सुनहिं पुरवासिनहिं,अंगदादि-हनु सोय।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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