डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-10

रमारमन प्रभु रच्छा करऊ।

सरनागत-रच्छक तुम्ह अहऊ।।

     भुजा बीस रावन-दस सीसा।

     राच्छस सकुल हतेउ जगदीसा।।

प्रभु तुम्ह अहहु अवनि-आभूषन।

धनु-सायक-निषंग तव भूषन ।।

      भानु क किरन-प्रकास समाना।

       नाथ तेज तव धनु अरु बाना।।

तुमहिं करत निसि-तम कै नासा।

मद-ममता अरु क्रोध बिनासा।।

      जे नहिं करहिं प्रीति पद-पंकज।

       रहहिं मलिन-उदास ते सुख तज।।

रुचिकर लगै जिनहिं प्रभु-लीला।

मान-लोभ-मद प्रति मन ढीला ।।

       सो साँचा सेवक प्रभु होवै।

       करै पार भव-सिंधु,न खोवै।।

अरु बिचरै जग संत की नाई।

बिनू मान-अपमान लखाई ।।

      राम क सत्रु अहहि अभिमाना।

       जनम-मरन औषधी समाना।।

नाथ सील-गुन-कृपा-निकेता।

राम महीप दीन जन-चेता।।

       करउ नाथ रच्छा तुम्ह मोरी।

        देवहु अचल भगति मों तोरी।।

दैहिक-दैविक-भौतिक तापा।

राम क कथा हरै परितापा।।

       सुनै जे छाँड़ि कथा आसक्ती।

        ओहिका मिलै मुक्ति अरु भक्ती।।

राम-कथा बिबेक दृढ़ करई।

बिरति-भगति प्रबलहि बहु भवई।।

      मोह क नदी पार जन जावहिं।

       चढ़ि के तुरत भगति के नावहिं।।

दोहा-निसि-बासर तहँ अवधपुर,कथा राम कै होय।

        मगन सुनहिं पुरवासिनहिं,अंगदादि-हनु सोय।

                         डॉ0हरि नाथ मिश्र

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