*मधुरालय*
*सुरभित आसव मधुरालय का*16
सब देवालय,सब ग्रंथालय,
जितने शिक्षा-सदन यहाँ।
सबके संचित ज्ञान-कोष की-
होती यहीं लिखाई है।।
ज्ञान संग विज्ञान की शिक्षा,
वैदिक शास्त्र,पुराणों की।
मानव-मूल्यों की भी शिक्षा-
इससे जग ने पाई है।।
औषधीय पद्धतियों का भी,
प्रतिपादक मधुरालय है।
रखे स्वस्थ यह जन-जन मन को-
नहीं वर्ण-टकराई है।।
समतामूलक संस्कृति की यह,
सदा सूचना देता है।
यह मधुरालय बस प्रहरी सा-
करता रात-जगाई है।।
विविध रूप-रँग-कला-केंद्र यह,
रखे बाँध इक धागे में।
शत्रु-भाव को कर अमान्य यह-
उपदेशक-समताई है।।
अति विशिष्ट मधुरालय-आसव,
विश्व-पटल का बन आसव।
सातो सिंधु पार जा करता-
अपनी पैठ-बिठाई है।।
भारतीय आदर्शों-मूल्यों,
की विदेश में शान बढ़ी।
श्वेत-श्याम की घृणित धारणा-
की जग करे खिंचाई है।।
आसव तो है निर्मल-पावन,
सोच-समझ मानव-मन की।
मधुर सोच,रसभरी समझ ही-
मन-रसाल-अमराई है।।
पावन आसव-सोच-पवित्रता,
मुदित मना करती नर्तन।
नृत्य-कला की बिबिध भंगिमा-
देख धरा लहराई है।।
आसव-असर-प्रभाव-पवित्रता,
पा पवित्र यह धरती हो।
मनसा-वाचा और कर्मणा-
जन-जन शुचिता छाई है।।
पूरब-पश्चिम,उत्तर-दक्षिण,
मधुरालय की चर्चा है।
गौरव-गरिमा मातृ-भूमि यह-
जग-बगिया महकाई है।।
स्नेह-भाव,सम्मान-सुहृद गृह,
मधुरालय रुचिरालय है।
गरल कंठ जा अमृत होती-
शिवशंकर-चतुराई है।।
सदा रहा मन कंपित अपना,
कैसा आसव-स्वाद रहे?
पर आसव ने हरी व्यग्रता-
नीति अमल अपनाई है।।
नव प्रभात ले,नई चेतना,
सँग नव ज्योति सदा फैले।
प्रगतिशील नित नूतन चिंतन-
की आसव विमलाई है।।
सदा भारती ज्ञान की देवी,
से आसव की शान बढ़े।
मधुरालय की दिव्य छटा लखि-
माँ वाणी मुस्काई है।।
एक घूँट बस दे दे साक़ी-
आसव की सुधि आई है।।
© डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें