*षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-59
लेइ सबहिं तब गयउ बिभीषन।
सिय पहँ तुरत लंक-कुलभूषन।।
सबिधि सजाइ बिठाइ पालकी।
रच्छक सँग लइ आय जानकी।।
धाए तहाँ तुरत कपि-भालू।
देखन जननी सियहिं दयालू।।
तुरतै कहे राम रघुराया।
पैदल लाउ सियहिं सुनु भाया।।
नाहिं त होहिहिं बहुत अनीती।
करिहउ तसै कहै जस नीती।।
लखन जाउ अगिनिहिं उपजाऊ।
तेहि मा सीते तब तुम्ह जाऊ।।
सुद्धिकरन मैं चाहूँ सीता।
होहु न तुम्ह सभ कछु भयभीता।
सीता जानहिं प्रभु कै लीला।
कीन्ह प्रबेस अनल गुन सीला।।
मन-क्रम-बचनहिं सीय पुनीता।
प्रभु-पद-पंकज बंदउ सीता ।।
प्रगट भईं सँग अनल सरीरा।
सत स्वरूप समच्छ रघुबीरा।।
लछिमिहिं अर्पेयु जस पय-सागर।
बिष्णुहिं तथा राम नय नागर।।
अगिनि समरपेउ तैसै सीता।
अति हरषित भे राम पुनीता।।
हरषित भए सभें सुर ऊपर।
बर्षा सुमन कीन्ह तब महि पर।।
सोनकली जस नीलकमल सँग।
सोहहिं सिय तस राम-बाम अँग।।
सोरठा-लखि सिय प्रभु के बाम,भे बहु हरषित भालु-कपि।
आयसु पा श्रीराम, मातल गे तब इंद्र पहँ ।।
दोहा-आइ तुरत सभ देवगन,रामहिं बहुत सराहिं।
धन्य नाथ जे तुम्ह हतेउ,रावन पापी आहिं।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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