डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 सजल

मात्रा-भार-21

समांत-आनी

अब तो लिखनी एक कहानी चाहिए।

लिखकर सबको इसे सुनानी चाहिए।।


विस्मृत लगती संस्कृति अपनी जैसे।

गाथा संस्कृति की पुरानी चाहिए।।


हैं पथ से भटक गए कृषक कुछ अपने।

नई सोच की उन्हें किसानी चाहिए।।


हुआ प्रदूषित नदी-तड़ाग-जल सारा।

निर्मल अब तो सबको पानी चाहिए।।


हुई है चाल सियासत की अति बिगड़ी।

अब तो चाल नहीं मनमानी चाहिए।।


चहुँ-दिशि मचा है हाहाकार जगत में।

समझे इसको,ऐसा ज्ञानी चाहिए।।


रखे समर्पण भाव जो राष्ट्र हेतु ही।

मित्रों,बस ऐसी ही जवानी चाहिए।।

         ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

              9919446372

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