*सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-4
अवधपुरी महँ प्रकृति सुहानी।
नगरी भे जनु सोभा-खानी।
त्रिबिध समीर बहन तब लागा।
धारि उरहिं रामहिं अनुरागा।
सीतल सलिला सरजू निरमल।
लागल बहै प्रसांत-अचंचल।।
परिजन-गुरु अरु अनुज समेता।
चले भरत जहँ कृपा-निकेता।।
चढ़ि-चढ़ि भवन-अटारिन्ह ऊपर।
नारी लखहिं बिमान प्रभू कर ।।
पूर्णचन्द्र इव प्रभु श्रीरामा।
अवधपुरी सागर अभिरामा।।
पुरवासी सभ लहर समाना।
लहरत उठि-उठि लखैं बिमाना।।
कहहिं राम लखाइ निज नगरी।
लखु,कपीस-अंगद बहु सुघरी।।
लखहु बिभीषन-कपि तुम्ह सबहीं।
अवधपुरी सम नहिं कहुँ अहहीं।।
सरजू सरित बहै उत्तर-दिसि।
मम नगरी बड़ सुघ्घर जस ससि।।
बड़ पवित्र अह सरजू-नीरा।
मज्जन करत जाय जग-पीरा।।
मम संगति-सुख ताको मिलई।
मज्जन करन हेतु जे अवई ।।
परम धाम मम नगर सुहावन।
बहु प्रिय मम पुरवासी पावन।।
प्रभु-मुख सुनि अस नगर-बखाना।
भए मगन कपि-भालू नाना ।।
धन्य भूमि अस सभ पुरवासी।
होंहिं जहाँ कर राम निवासी।।
उतरा झट बिमान तेहिं अवसर।
पाइ निदेस राम कै सर-सर।।
दोहा-उतरि यान श्रीराम कह,पुष्पक जाहु कुबेर।
रखि के हरष-बिषाद उर,उड़ बिमान बिनु देर।।
प्रभु-बियोग कृष बपु-भरत,लइ बसिष्ठ गुरु बाम।
पुरवासिन्ह लइ संग निज,गए पहुँचि जहँ राम।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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