डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-4

अवधपुरी महँ प्रकृति सुहानी।

नगरी भे जनु सोभा-खानी।

      त्रिबिध समीर बहन तब लागा।

       धारि उरहिं रामहिं अनुरागा।

सीतल सलिला सरजू निरमल।

लागल बहै प्रसांत-अचंचल।।

    परिजन-गुरु अरु अनुज समेता।

     चले भरत जहँ कृपा-निकेता।।

चढ़ि-चढ़ि भवन-अटारिन्ह ऊपर।

नारी लखहिं बिमान प्रभू कर ।।

     पूर्णचन्द्र इव प्रभु श्रीरामा।

      अवधपुरी सागर अभिरामा।।

पुरवासी सभ लहर समाना।

लहरत उठि-उठि लखैं बिमाना।।

     कहहिं राम लखाइ निज नगरी।

      लखु,कपीस-अंगद बहु सुघरी।।

लखहु बिभीषन-कपि तुम्ह सबहीं।

अवधपुरी सम नहिं कहुँ अहहीं।।

     सरजू सरित बहै उत्तर-दिसि।

     मम नगरी बड़ सुघ्घर जस ससि।।

बड़ पवित्र अह सरजू-नीरा।

मज्जन करत जाय जग-पीरा।।

      मम संगति-सुख ताको मिलई।

      मज्जन करन हेतु जे अवई ।।

परम धाम मम नगर सुहावन।

बहु प्रिय मम पुरवासी पावन।।

      प्रभु-मुख सुनि अस नगर-बखाना।

      भए मगन कपि-भालू नाना ।।

धन्य भूमि अस सभ पुरवासी।

होंहिं जहाँ कर राम निवासी।।

     उतरा झट बिमान तेहिं अवसर।

       पाइ निदेस राम कै सर-सर।।

दोहा-उतरि यान श्रीराम कह,पुष्पक जाहु कुबेर।

         रखि के हरष-बिषाद उर,उड़ बिमान बिनु देर।।

        प्रभु-बियोग कृष बपु-भरत,लइ बसिष्ठ गुरु बाम।

        पुरवासिन्ह लइ संग निज,गए पहुँचि जहँ राम।।

                            डॉ0हरि नाथ मिश्र

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