डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 सवेरे-सवेरे

               *सवेरे-सवेरे*

कोइ आ के जगाया सवेरे-सवेरे।

प्रीति-आसव पिलाया सवेरे-सवेरे।।


 संग में ले अपने चरागे मोहब्बत।

आ,अँधेरा भगाया सवेरे-सवेरे।।


रहा द्वंद्व दिल में पता भी नहीं था।

आ,किसी ने जताया सवेरे-सवेरे।।


जो गया भूल था भी सबक जिंदगी का।

आ,किसी ने सिखाया सवेरे-सवेरे।।


बेवजह सोचते आँख जब लग गई थी।

 स्वप्न प्यारा सा आया सवेरे-सवेरे।।


अभी स्वप्न में जो रहा नक़्शा अधूरा।

आ,कसी ने बनाया सवेरे-सवेरे।।


 सधी जब नहीं थी वो ग़ज़ल रात मुझसे।

आ,किसी ने सधाया सवेरे-सवेरे।।


नाज था जिस महक पे दिले बागबाँ को।

 बह,हवा ने चुराया सवेरे-सवेरे ।।

                 ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                  9919446372

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