सवेरे-सवेरे
*सवेरे-सवेरे*
कोइ आ के जगाया सवेरे-सवेरे।
प्रीति-आसव पिलाया सवेरे-सवेरे।।
संग में ले अपने चरागे मोहब्बत।
आ,अँधेरा भगाया सवेरे-सवेरे।।
रहा द्वंद्व दिल में पता भी नहीं था।
आ,किसी ने जताया सवेरे-सवेरे।।
जो गया भूल था भी सबक जिंदगी का।
आ,किसी ने सिखाया सवेरे-सवेरे।।
बेवजह सोचते आँख जब लग गई थी।
स्वप्न प्यारा सा आया सवेरे-सवेरे।।
अभी स्वप्न में जो रहा नक़्शा अधूरा।
आ,कसी ने बनाया सवेरे-सवेरे।।
सधी जब नहीं थी वो ग़ज़ल रात मुझसे।
आ,किसी ने सधाया सवेरे-सवेरे।।
नाज था जिस महक पे दिले बागबाँ को।
बह,हवा ने चुराया सवेरे-सवेरे ।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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