डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *गीत*(16/14)

प्रिय परदेश छोड़,घर आओ,

अब वसंत आने को है।

कलियाँ खिल-खिल करें सुवासित,

अलि-गुंजन छाने को है।।


पतझड़ गया,कोपलें निकलीं,

तरु ने ली अँगड़ाई है।

बौर लग गए आम्र वृक्ष पर,

सजी-धजी अमराई है।

आम-डाल पर बैठ कोकिला-

गीत मधुर गाने को है।।

      अलि-गुंजन छाने को है।।


बहने लगा समीर फागुनी,

मादक-मादक,डगर-डगर।

मस्त लगें घर-आँगन सारे,

बस्ती-कुनबे, गाँव-नगर।

फूल रहीं सरसों खेतों  की-

प्रिय सुगंध लाने को है।।

    अलि-गुंजन छाने को है।।


तन-मन में नित आग लगाए, 

यह मधुमास बड़ा छलिया।

भले बदन को झुलसाता यह,

पर,अनुभव देता बढ़िया।

मधुर याद भी तेरी कहती-

अब मन मुस्काने को है।।

     अलि-गुंजन छाने को है।।


चला-चला कर पुष्प-वाण अब,

करे अनंग हृदय छलनी।

नहीं सजन जब संग रहें तो,

सुख पाए कैसे सजनी?

कहता मुझसे फाग प्यार से-

कंत-प्रेम पाने को है।।

     अलि-गुंजन छाने को है।।

       प्रिय परदेश छोड़,घर आओ,

       अब वसंत आने को है।।

                   © डॉ0हरि नाथ मिश्र

                        9919446372

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