डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-17

सब जन भजहिं अहर्निसि रामा।

बिनय-सील-सोभा-गुनधामा ।।

      पंकज लोचन,स्यामल गाता।

       प्रभु प्रतिपालक सभ जन त्राता।।

सारँग धनु निषंग धरि बाना।

संतन्ह रच्छहिं प्रभु भगवाना।।

     काल ब्याल,प्रभु गरुड़ समाना।

     भजहु राम प्रभु धरि हिय ध्याना।।

भ्रम-संसय-तम नासहिं रामा।

भानु-किरन इव प्रभु अभिरामा।।

      रावन-कुल जनु बीहड़ कानन।

      रामहिं अनल कीन्ह फुँकि लावन।।

अस प्रभु भजहु सीय के साथा।

कर जोरे झुकाइ निज माथा।।

      समरस राम अजहिं-अबिनासी।

       उन्हकर भजन बासना-नासी।।

राम-दिनेस उगत चहुँ-ओरा।

भे प्रकास जल-थल-नभ-छोरा।।

      भवा अबिद्या-रजनी नासा।

       अघ उलूक जनु छुपे अकासा।।

कामइ-क्रोध-कुमुदिनी लज्जित।

लखि प्रकास रबि गगन सुसज्जित।।

     लहहि न सुख गुन-काल-चकोरा।

      कर्म सहज मन-मत्सर-चोरा।।

मोहहि-मान-हुनर नहिं चलई।

खुलै दिवस मा इन्हकर कलई।।

     सभ बिग्यान-ग्यान जनु पंकज।

      बिगसे धरम-ताल-रबि दिग्गज।।

दोहा-उदित होत रबि कै किरन,बढ़हिं ग्यान-बिग्यान।

         काम-क्रोध-मद-लोभ सभ,छुपहिं उलूक समान।।

                      डॉ0हरि नाथ मिश्र

                          9919446372

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