*सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-17
सब जन भजहिं अहर्निसि रामा।
बिनय-सील-सोभा-गुनधामा ।।
पंकज लोचन,स्यामल गाता।
प्रभु प्रतिपालक सभ जन त्राता।।
सारँग धनु निषंग धरि बाना।
संतन्ह रच्छहिं प्रभु भगवाना।।
काल ब्याल,प्रभु गरुड़ समाना।
भजहु राम प्रभु धरि हिय ध्याना।।
भ्रम-संसय-तम नासहिं रामा।
भानु-किरन इव प्रभु अभिरामा।।
रावन-कुल जनु बीहड़ कानन।
रामहिं अनल कीन्ह फुँकि लावन।।
अस प्रभु भजहु सीय के साथा।
कर जोरे झुकाइ निज माथा।।
समरस राम अजहिं-अबिनासी।
उन्हकर भजन बासना-नासी।।
राम-दिनेस उगत चहुँ-ओरा।
भे प्रकास जल-थल-नभ-छोरा।।
भवा अबिद्या-रजनी नासा।
अघ उलूक जनु छुपे अकासा।।
कामइ-क्रोध-कुमुदिनी लज्जित।
लखि प्रकास रबि गगन सुसज्जित।।
लहहि न सुख गुन-काल-चकोरा।
कर्म सहज मन-मत्सर-चोरा।।
मोहहि-मान-हुनर नहिं चलई।
खुलै दिवस मा इन्हकर कलई।।
सभ बिग्यान-ग्यान जनु पंकज।
बिगसे धरम-ताल-रबि दिग्गज।।
दोहा-उदित होत रबि कै किरन,बढ़हिं ग्यान-बिग्यान।
काम-क्रोध-मद-लोभ सभ,छुपहिं उलूक समान।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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