* सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-1
बंदउँ कमल चरन रघुराई।
सरसिज नयन लखन के भाई।।
पीत बसन धारी प्रभु रामा।
बरन मयूर कंठ अभिरामा।।
कर महँ धनुष-बान बड़ सोहैं।
पुष्पक बैठि नाथ मन मोहैं।।
रघुकुल-मनी जानकी-स्वामी।
बेद-सास्त्र-नीति अनुगामी।।
राम-चरन बंदत अज-संकर।
करउँ नमन ते चरन निरंतर।।
कपिन्ह समेत राम रघुनाथा।
स्तुति करउँ नाइ निज माथा।।
कुंद-इंदु अरु संख समाना।
गौर बरन संकर जग जाना।।
करहुँ प्रनाम तिनहिं कर जोरे।
रजनी-बासर, संध्या-भोरे।।
जगत-जननि पारबती माता।
संकर-पत्नी जग सुख-दाता।।
वांछित फल सिव देवन हारा।
जीवन-नैया खेवन हारा।।
दोहा-भजै जगत जे राम-सिव,ताकर हो कल्यान।
संकर-रामहिं कृपा तें, कारजु होय महान।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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