डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 * सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-1

बंदउँ कमल चरन रघुराई।

सरसिज नयन लखन के भाई।।

     पीत बसन धारी प्रभु रामा।

     बरन मयूर कंठ अभिरामा।।

कर महँ धनुष-बान बड़ सोहैं।

पुष्पक बैठि नाथ मन मोहैं।।

    रघुकुल-मनी जानकी-स्वामी।

     बेद-सास्त्र-नीति अनुगामी।।

राम-चरन बंदत अज-संकर।

करउँ नमन ते चरन निरंतर।।

     कपिन्ह समेत राम रघुनाथा।

      स्तुति करउँ नाइ निज माथा।।

कुंद-इंदु अरु संख समाना।

गौर बरन संकर जग जाना।।

     करहुँ प्रनाम तिनहिं कर जोरे।

      रजनी-बासर, संध्या-भोरे।।

जगत-जननि पारबती माता।

संकर-पत्नी जग सुख-दाता।।

      वांछित फल सिव देवन हारा।

       जीवन-नैया खेवन हारा।।

दोहा-भजै जगत जे राम-सिव,ताकर हो कल्यान।

         संकर-रामहिं कृपा तें, कारजु होय महान।।

                       डॉ0हरि नाथ मिश्र

                          9919446372

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511