गीत
*गीत*(16/16)
जीवन-सपना पूरा होता,
यदि तुम कहीं नहीं जाते तो।
अपनी प्रीति सफल हो जाती-
तुम यदि प्रीति निभा पाते तो।।
और नहीं कुछ माँगे थे हम,
केवल माँगे थे प्यार ज़रा।
नहीं सुने तुम विनय हमारी,
भाव न जाने भी प्रेम भरा।
यादें तेरी नहीं सतातीं-
नहीं ख़्वाब में यदि आते तो।
तुम यदि प्रीति निभा पाते तो।।
कितनी प्यारी दुनिया लगती,
प्यारे चाँद-सितारे भी सब।
बाग-बगीचे,वन-उपवन सँग,
झील-नदी-सर-झरने भी तब।
खग-कलरव सँग मधुकर-गुंजन-
अति प्रिय लगते यदि गाते तो।
तुम यदि प्रीति निभा पाते तो।।
राग-रागिनी की धुन मधुरिम,
धीरे-धीरे दिल बहलाती।
कड़क दामिनी गगन मध्य से,
विरह-ज़ख्म रह-रह सहलाती।
हरित भाव सब उर के होते-
बादल बन यदि बरसाते तो।
तुम यदि प्रीति निभा पाते तो।।
पुष्प-वाटिका बिना भ्रमर के,
रीती-रीती सी लगती है।
बिना गुलों के गुलशन की छवि,
फ़ीकी-फ़ीकी सी रहती है।
जीवन-उपवन फिर खिल जाता-
बन भौंरा यदि मँडराते तो।
तुम यदि प्रीति निभा पाते तो।। प्रिती
बिना प्रीति के मानव-जीवन,
बहुत अधूरा सा लगता है।
तम छँट जाता प्रेम-दीप जब,
प्यारा पूरा सा जलता है।
ज्योतिर्मय हो जाता जीवन-
यदि आ दीप जला जाते तो।
तुम यदि प्रीति निभा पाते तो।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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