डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 गीत

          *गीत*(16/16)

 जीवन-सपना पूरा होता,

यदि तुम कहीं नहीं जाते तो।

अपनी प्रीति सफल हो जाती-

तुम यदि प्रीति निभा पाते तो।।


और नहीं कुछ माँगे थे हम,

केवल माँगे थे प्यार ज़रा।

नहीं सुने तुम विनय हमारी,

भाव न जाने भी प्रेम भरा।

यादें तेरी नहीं सतातीं-

नहीं ख़्वाब में यदि आते तो।

      तुम यदि प्रीति निभा पाते तो।।


कितनी प्यारी दुनिया लगती,

प्यारे चाँद-सितारे भी सब।

बाग-बगीचे,वन-उपवन सँग,

झील-नदी-सर-झरने भी तब।

खग-कलरव सँग मधुकर-गुंजन-

अति प्रिय लगते यदि गाते तो।

    तुम यदि प्रीति निभा पाते तो।।


राग-रागिनी की धुन मधुरिम,

धीरे-धीरे दिल बहलाती।

कड़क दामिनी गगन मध्य से,

विरह-ज़ख्म रह-रह सहलाती।

हरित भाव सब उर के होते-

बादल बन यदि बरसाते तो।

      तुम यदि प्रीति निभा पाते तो।।


पुष्प-वाटिका बिना भ्रमर के,

रीती-रीती सी लगती है।

बिना गुलों के गुलशन की छवि,

फ़ीकी-फ़ीकी सी रहती है।

जीवन-उपवन फिर खिल जाता-

बन भौंरा यदि मँडराते तो।

       तुम यदि प्रीति निभा पाते तो।। प्रिती


बिना प्रीति के मानव-जीवन,

बहुत अधूरा सा लगता है।

तम छँट जाता प्रेम-दीप जब,

प्यारा पूरा सा जलता है।

ज्योतिर्मय हो जाता जीवन-

यदि आ दीप जला जाते तो।

     तुम यदि प्रीति निभा पाते तो।।

                 ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                    9919446372

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