*सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-2
बचा रहा बस एक दिवस अब।
अइहैं रामहिं पुरी अवध जब।।
होवन लगे सगुन बड़ सुंदर।
अवधपुरी महँ बाहर-अंदर।।
दाहिन लोचन-भुजा भरत कय।
फरकन लगी सगुन कइ-कइ कय।।
सगुन होत हरषी सभ माता।
दिन सुभकर अस दीन्ह बिधाता।।
होय भरत-मन परम अधीरा।
काहे नहिं आए रघुबीरा ।।
पुनि-पुनि कहहिं कवन त्रुटि मोरी।
भूले हमका जानि अघोरी ।।
लछिमन तुमहीं रह बड़ भागी।
रहत नाथ सँग बनि सहभागी।।
कपटी जानि मोंहि बिसरायो।
यहिं तें नहीं अबहिं तक आयो।।
पर प्रभु दीनबंधु-जगस्वामी।
तारहिं पतित-खडुस-खल-कामी।।
अइहैं नाथ अवसि मैं जानूँ।
यहिं तें भवा सगुन मैं मानूँ।।
तेहि अवसर आयो हनुमाना।
बटुक-बिप्र कै पहिरे बाना।।
तापस भेषहिं भरत कुसासन।
सोचत रहे राम कै आवन।।
दोहा-देखि पवन-सुत भरत कहँ,बिकल नयन भरि नीर।
पुलकित तन हरषित भए,कहहिं बचन धरि धीर।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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