डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *गजराज*(दोहे)

सज-धज कर शोभन लगे,चलत-फिरत गजराज।

मस्त चाल मन-भावनी,वन्य-जीव-सरताज ।।


ओढ़ दुशाला झालरी,पग-पहिरावा लाल।

मग में झूमत जा रहे,जैसे वे ससुराल ।।


सूँड़ लचीला तो रहे,पर वह गज-हथियार।

तोड़े झटपट तरु-शिखा,डाले मुख के द्वार।।


भीमकाय ये जंतु गज,रखें समझ बेजोड़।

स्वामिभक्त होते सदा,शत्रु-मान दें तोड़।।


युद्ध-भूमि में जा करें, अद्भुत कला-कमाल।

स्वामी की रक्षा करें,बनकर रण में ढाल।।


जंगल के हैं जीव ये,पर समझें संकेत।

निज कुल की रक्षा करें,रहकर सदा सचेत।।


रहें सदा ये झुंड में,करके गठित समाज।

रखें सोच नर भाँति गज,धन्य-धन्य गजराज।।

              ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                   9919446372

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