डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *वसंत*

             ऋतुराज

हे वसंत ऋतुराज!तुम्हारा स्वागत है,

कोयल-कूक, भ्रमर-मृदु गुंजन।

दें तुमको आवाज़-तुम्हारा स्वागत है।।


फूल खिल गए गुलशन-गुलशन,

जिनपर करें तितलियाँ नर्तन।

बजे गीत के साज़-तुम्हारा स्वागत है।।


प्रकृति अनोखी सजी हुई है,

आम्र-मंजरी लदी हुई है।

हुआ प्रीति आगाज़-तुम्हारा स्वागत है।।


फूली सरसों छटा बिखेरे,

सजी धरा को लखें चितेरे।

मनमोहक महि-लाज-तुम्हारा स्वागत है।।


थलचर-जलचर-नभचर सब में,

नदी-तड़ाग-गिरि, वन-उपवन में।

रति-अनंग-साम्राज्य-तुम्हारा स्वागत है।।


तुम प्रतीक मधुमास सुहावन,

प्रेमी-प्रेयसि के मनभावन।

हो तुमहीं सरताज-तुम्हारा स्वागत है।।


तुम्हीं नियंता सब ऋतुओं के,

हो अभियंता रस-तत्त्वों के।

दस दिशि तेरा राज-तुम्हारा स्वागत है।।


मगन-मुदित जग हो पा तुमको,

मिलता सुख असीम है सबको।

खग-मृग सकल समाज-तुम्हारा स्वागत है।।

हे वसंत ऋतुराज!तुम्हारा स्वागत है ।।

                 ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                  9919446372

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