सप्तम चरण (श्रीरामचरितबखान)-16
दोहा-हाटहिं बनिक कुबेर सम,सकल सराफ बजाज।
राम-राज बिनु मूल्य के,बस्तुहिं मिलहिं समाज।।
निर्मल जल सरजू बह उत्तर।
घाट सुबन्ध न कीचड़ तेहिं पर।
अलग-अलग घाटन्ह जल पिवहीं।
गजहिं-मतंग-बाजि जे रहहीं ।।
नारी-पनघट इतर रहाहीं।
पुरुष न कबहूँ उहाँ नहाहीं।।
राज-घाट अति उत्तम रहऊ।
बिनु बिभेद मज्जन जन करऊ।।
सुंदर उपबन मंदिर-तीरा।
देवन्ह अर्चन होय गँभीरा।।
इत-उत तीरे मुनि-संन्यासी।
रहहिं ग्यानरस सतत पियासी।।
बहु-बहु लता-तुलसिका सोहैं।
इत-उत तीरे मुनिगन मोहैं।।
अवधपुरी जग पुरी सुहावन।
बाहर-भीतर अति मनभावन।।
रुचिर-मनोहर नगरी-रूपा।
पाप भगै लखि पुरी अनूपा।।
छंद-सोहहिं रुचिर तड़ाग-वापी,
कूप चहुँ-दिसि पुर-नगर।
मोहहिं सुरन्ह अरु ऋषि-मुनी,
सोपान निरमल जल सरोवर।
कूजहिं पखेरू बिबिध तहँ,
अरु भ्रमर बहु गुंजन करहिं।
पिकादि खग तरु-सिखन्ह कूजत,
पथिक जन जनु श्रम हरहिं।।
दोहा-राम-राज महँ अवधपुर,समृधि-संपदा पूर।
आठहु-सिधि,नव-निधि सुखहिं,मिलइ सभें भरपूर।।
*सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-16
दोहा-हाटहिं बनिक कुबेर सम,सकल सराफ बजाज।
राम-राज बिनु मूल्य के,बस्तुहिं मिलहिं समाज।।
निर्मल जल सरजू बह उत्तर।
घाट सुबन्ध न कीचड़ तेहिं पर।
अलग-अलग घाटन्ह जल पिवहीं।
गजहिं-मतंग-बाजि जे रहहीं ।।
नारी-पनघट इतर रहाहीं।
पुरुष न कबहूँ उहाँ नहाहीं।।
राज-घाट अति उत्तम रहऊ।
बिनु बिभेद मज्जन जन करऊ।।
सुंदर उपबन मंदिर-तीरा।
देवन्ह अर्चन होय गँभीरा।।
इत-उत तीरे मुनि-संन्यासी।
रहहिं ग्यानरस सतत पियासी।।
बहु-बहु लता-तुलसिका सोहैं।
इत-उत तीरे मुनिगन मोहैं।।
अवधपुरी जग पुरी सुहावन।
बाहर-भीतर अति मनभावन।।
रुचिर-मनोहर नगरी-रूपा।
पाप भगै लखि पुरी अनूपा।।
छंद-सोहहिं रुचिर तड़ाग-वापी,
कूप चहुँ-दिसि पुर-नगर।
मोहहिं सुरन्ह अरु ऋषि-मुनी,
सोपान निरमल जल सरोवर।
कूजहिं पखेरू बिबिध तहँ,
अरु भ्रमर बहु गुंजन करहिं।
पिकादि खग तरु-सिखन्ह कूजत,
पथिक जन जनु श्रम हरहिं।।
दोहा-राम-राज महँ अवधपुर,समृधि-संपदा पूर।
आठहु-सिधि,नव-निधि सुखहिं,मिलइ सभें भरपूर।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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