डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 सप्तम चरण (श्रीरामचरितबखान)-16

दोहा-हाटहिं बनिक कुबेर सम,सकल सराफ बजाज।

        राम-राज बिनु मूल्य के,बस्तुहिं मिलहिं समाज।।

निर्मल जल सरजू बह उत्तर।

घाट सुबन्ध न कीचड़ तेहिं पर।

     अलग-अलग घाटन्ह जल पिवहीं।

      गजहिं-मतंग-बाजि जे रहहीं ।।

नारी-पनघट इतर रहाहीं।

पुरुष न कबहूँ उहाँ नहाहीं।।

      राज-घाट अति उत्तम रहऊ।

       बिनु बिभेद मज्जन जन करऊ।।

सुंदर उपबन मंदिर-तीरा।

देवन्ह अर्चन होय गँभीरा।।

      इत-उत तीरे मुनि-संन्यासी।

       रहहिं ग्यानरस सतत पियासी।।

बहु-बहु लता-तुलसिका सोहैं।

इत-उत तीरे मुनिगन मोहैं।।

     अवधपुरी जग पुरी सुहावन।

      बाहर-भीतर अति मनभावन।।

रुचिर-मनोहर नगरी-रूपा।

पाप भगै लखि पुरी अनूपा।।

छंद-सोहहिं रुचिर तड़ाग-वापी,

              कूप चहुँ-दिसि पुर-नगर।

      मोहहिं सुरन्ह अरु ऋषि-मुनी,

             सोपान निरमल जल सरोवर।

      कूजहिं पखेरू बिबिध तहँ,

              अरु भ्रमर बहु गुंजन करहिं।

      पिकादि खग तरु-सिखन्ह कूजत,

               पथिक जन जनु श्रम हरहिं।।

दोहा-राम-राज महँ अवधपुर,समृधि-संपदा पूर।

      आठहु-सिधि,नव-निधि सुखहिं,मिलइ सभें भरपूर।।

                          *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-16

दोहा-हाटहिं बनिक कुबेर सम,सकल सराफ बजाज।

        राम-राज बिनु मूल्य के,बस्तुहिं मिलहिं समाज।।

निर्मल जल सरजू बह उत्तर।

घाट सुबन्ध न कीचड़ तेहिं पर।

     अलग-अलग घाटन्ह जल पिवहीं।

      गजहिं-मतंग-बाजि जे रहहीं ।।

नारी-पनघट इतर रहाहीं।

पुरुष न कबहूँ उहाँ नहाहीं।।

      राज-घाट अति उत्तम रहऊ।

       बिनु बिभेद मज्जन जन करऊ।।

सुंदर उपबन मंदिर-तीरा।

देवन्ह अर्चन होय गँभीरा।।

      इत-उत तीरे मुनि-संन्यासी।

       रहहिं ग्यानरस सतत पियासी।।

बहु-बहु लता-तुलसिका सोहैं।

इत-उत तीरे मुनिगन मोहैं।।

     अवधपुरी जग पुरी सुहावन।

      बाहर-भीतर अति मनभावन।।

रुचिर-मनोहर नगरी-रूपा।

पाप भगै लखि पुरी अनूपा।।

छंद-सोहहिं रुचिर तड़ाग-वापी,

              कूप चहुँ-दिसि पुर-नगर।

      मोहहिं सुरन्ह अरु ऋषि-मुनी,

             सोपान निरमल जल सरोवर।

      कूजहिं पखेरू बिबिध तहँ,

              अरु भ्रमर बहु गुंजन करहिं।

      पिकादि खग तरु-सिखन्ह कूजत,

               पथिक जन जनु श्रम हरहिं।।

दोहा-राम-राज महँ अवधपुर,समृधि-संपदा पूर।

      आठहु-सिधि,नव-निधि सुखहिं,मिलइ सभें भरपूर।।

                          डॉ0हरि नाथ मिश्र

                            9919446372

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