*सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-7
भवन गए तब रघुकुल-नायक।
करुना-सिंधु राम,सुखदायक।।
देखन लगे अटारिन्ह चढ़ि सब।
साँवर रूप सराहहिं अब-तब।।
साजे रहे सभें निज द्वारा।
कनक-कलस सँग बन्दनवारा।।
पुरे चौक गज-मुक्तन्ह द्वारे।
गलिनहिं सकल सुगंध सवाँरे।।
चहुँ-दिसि गीति सुमंगल गावैं।
बाजा-गाजा हरषि बजावैं ।।
जुबती करहिं आरती नाना।
गावत गीति सुमंगल गाना।।
राम-आरती नारी करहीं।
सेष-सारदा सोभा लखहीं।।
नारि कुमुदिनी,अवध सरोवर।
सूरज बिरह रहे तहँ रघुबर।।
अस्त होत रबि लखि ते चंदा।
नारी कुमुद खिलीं सभ कंदा।।
हरषित करत सभें भगवाना।
कीन्ह भवन निज तुरत पयाना।।
जानि मातु कैकेई लज्जित।
प्रथम मिले मन मुदित सुसज्जित।।
बहु समुझाइ राम तब गयऊ।
आपुन भवन जहाँ ऊ रहऊ।।
जानि घड़ी सुभ सुदिन मनोहर।
द्विजन बुलाइ बसिष्ठ सनोहर।।
कहे बिठावउ राम सिंहासन।
पावहिं राम तुरत राजासन।।
सुनत बसिष्ठ-बचन द्विज कहहीं।
राम क तिलक तुरत अब भवहीं।।
सुनत सुमंत जोरि रथ-घोरे।
नगर सजा बोले कर जोरे।।
मंगल द्रब्यहिं अबहिं मँगायो।
अवधपुरी बहु भाँति सजायो।।
सुमन-बृष्टि कीन्ह सभ देवा।
सोभा पुरी चित्त हरि लेवा।।
राम तुरत सेवकन्ह बुलवाए।
सखा समेत सबहिं नहवाए।।
पुनि बुलाइ भरतहिं निज भ्राता।
निज कर जटा सवाँरे त्राता ।।
बंधुन्ह तिनहुँ सबिधि नहवाई।
गुरु बसिष्ठ कहँ सीष नवाई।।
आयसु पाइ तासु रघुराऊ।
छोरि जटा निज तहँ पसराऊ।।
पुनि प्रभु राम कीन्ह असनाना।
भूषन-बसन सजे बिधि नाना।।
दोहा-अनुपम छबि प्रभु राम कै, भूषन-बसनहिं संग।
लखि-लखि छबि अभिरामहीं,लज्जित कोटि अनंग।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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