*गीत*(16/14)
वृंत-वृंत पर फूल खिलें हैं,
और समीर सुगंधित है।
कलियों पर भौंरे मड़राएँ-
उपवन मधुकर-गुंजित है।।
पवन फागुनी की मादकता,
हृदय सभी का हुलसाए।
सजनी को उसके साजन की,
मीठी यादें दिलवाए।
बहक उठे मन उसका चंचल-
जो प्रियतम-सुख वंचित है।।
उपवन मधुकर-गुंजित है।।
आम्र-मंजरी की सुगंध पा,
विरही मन भी बौराए।
तड़पे जल बिन मीन सदृश वह,
इधर-उधर भी भरमाए।
लगे नहीं मधुमास सुहाना-
उसको तो जग-वंदित है।।
उपवन मधुकर-गुंजित है।।
पंछी अपने नीड़ बनाएँ,
कल-कल सरिता बहती है।
जीव-जंतु सब प्रेम जताएँ,
नई जिंदगी पलती है।
नव पल्लव से सजा वृक्ष भी-
खुशियों से अनुरंजित है।।
उपवन मधुकर-गुंजित है।।
रचे लेखनी रुचिकर रचना,
छवि मधुमास बसा मन में।
कवि-मन योगी जैसा रमता,
उच्च कल्पना के वन में।
ध्यान मग्न जो भाव उपजता-
होता मधुरस-सिंचित है।।
उपवन मधुकर-गुंजित है।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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