*षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-60
राम क नाम सदा सुखकारी।
प्रभु कै भजन होय हितकारी।।
होंहिं अनंत-अखंड श्रीरामा।
ब्रह्म स्वरूप,अतुल-बलधामा।।
दीनदयालु-परम हितकारी।
अति कृपालु, जग-मंगलकारी।।
सत्य-धरम के रच्छा हेतू।
राम अवतरेउ कृपा-निकेतू।।
तेज-प्रताप प्रखर प्रभु रामा।
दुष्ट-बिनास करहिं बलधामा।।
राम अजेय-सगुन-अबिनासी।
करुनामय-छबि-धाम-सदासी।।
प्रभु कै चरित इहाँ जे गावै।
अविरल भगति नाथ कै पावै।।
प्रगट भए तहँ दसरथ राऊ।
अतिसय मगन भए रघुराऊ।।
सानुज कीन्हा पितुहिं प्रनामा।
आसिस दसरथ दीन्हा रामा।।
तव प्रताप-बल रावन मारा।
सुनहु,पिता निसिचर संहारा।।
दसरथ-नयन नीर भरि आवा।
सुनि प्रभु-बचन परम सुख पावा।।
पितुहिं रूप निज ग्यान लखावा।
राम भगति तिन्ह देइ पठावा ।।
राम-भगति जब दसरथ पयऊ।
हरषित हो सुरधामहिं गयऊ।।
दोहा-देखि कुसल प्रभु राम कहँ,लखन-जानकी साथ।
देवराज तब हो मुदित,बंदहिं अवनत माथ। ।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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