डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-60

राम क नाम सदा सुखकारी।

प्रभु कै भजन होय हितकारी।।

     होंहिं अनंत-अखंड श्रीरामा।

     ब्रह्म स्वरूप,अतुल-बलधामा।।

दीनदयालु-परम हितकारी।

अति कृपालु, जग-मंगलकारी।।

      सत्य-धरम के रच्छा हेतू।

       राम अवतरेउ कृपा-निकेतू।।

तेज-प्रताप प्रखर प्रभु रामा।

दुष्ट-बिनास करहिं बलधामा।।

      राम अजेय-सगुन-अबिनासी।

       करुनामय-छबि-धाम-सदासी।।

प्रभु कै चरित इहाँ जे गावै।

अविरल भगति नाथ कै पावै।।

      प्रगट भए तहँ दसरथ राऊ।

       अतिसय मगन भए रघुराऊ।।

सानुज कीन्हा पितुहिं प्रनामा।

आसिस दसरथ दीन्हा रामा।।

      तव प्रताप-बल रावन मारा।

       सुनहु,पिता निसिचर संहारा।।

दसरथ-नयन नीर भरि आवा।

सुनि प्रभु-बचन परम सुख पावा।।

       पितुहिं रूप निज ग्यान लखावा।

      राम भगति तिन्ह देइ पठावा ।।

राम-भगति जब दसरथ पयऊ।

हरषित हो सुरधामहिं गयऊ।।

दोहा-देखि कुसल प्रभु राम कहँ,लखन-जानकी साथ।

        देवराज तब हो मुदित,बंदहिं अवनत माथ। ।।

                       डॉ0हरि नाथ मिश्र

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