डॉ0निर्मला शर्मा

 आयौ मधुमास


आयौ मधुमास प्रिय

छायौ अनुराग हिय।

छिटके चहुँ ओर रंग

बदला जीने का ढंग।


नदी आकाश प्रकृति

ईश की अनुपम कृति।

तन - मन मदमायौ

ऋतुराज देखो आयौ।


कामदेव ने तीर चलायौ

रति संग तिलिस्म रचायौ।

बिखरी अलबेली छटा

छाई आसमान घटा।


निखरी नवयौवना सी

प्रकृति बन नायिका सी।

पुलकित है सृष्टि सारी

अद्भुत है चित्रकारी।


भँवरे गुंजार करें

ध्वनि मिल अपार करे।

राग कोई छेड़ा हो

ऐसी झंकार करें।


कोयल की मीठी बोली

कानों में मिश्री घोली

बसन्त निज नायिका संग

खेले रंगों की होली


पक्षियों के कलरव से

झींगुरों की झन झन से।

पत्तों की ध्वनि सुहानी

संगीत का अहसास भरे।


डॉ0निर्मला शर्मा

दौसा राजस्थान

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