अँधेरा छटेगा
*गीत*(रौशनी न रही)
ये घटा घिर गई,रौशनी न रही,
ग़म न करना,अँधेरा छँटेगा ज़रूर।
रात आयी है इसको तो आना ही था-
ग़म न करना सवेरा रहेगा ज़रूर।।ये घटा घिर.......
हैं जो बादल यहाँ, चंद लम्हों के हैं,
गर्मियाँ-सर्दियाँ सिर्फ़ कहने को हैं।
इनका आना हुआ,समझो जाना हुआ-
ग़म न करना बसेरा रहेगा ज़रूर।।ये घटा घिर........
यह जो तूफ़ान है,इसमें ईमान है,
फ़र्ज़ पूरा करेगा चला जाएगा।
इसको मेहमाँ समझ कर गले से लगा-
देखना,गम घनेरा घटेगा ज़रूर।।ये घटा घिर........
ज़िंदगी के कई रूप देखे हैं हम,
कभी खुशहाल है तो कभी बदहाल है।
वक़्त ये है बदलती घड़ी की तरह-
देखना,सुख का फेरा लगेगा ज़रूर।।ये घटा घिर........
भूख है,प्यास है,आस-विश्वास है,
शांति है,क्रांति है,इसमें उपवास है।
ज़िंदगी ऐसी गर,हम हैं करते बसर-
जग ये जन्नत का डेरा बनेगा ज़रूर।।ये घटा घिर........
अभी वक़्त का दौर नाज़ुक बहुत,
है चलना सँभल कर कठिन पथ बहुत।
अपने जीवन का रक्षक स्वयं ही बनो-
ज़िंदगी में तभी सुख मिलेगा ज़रूर।।ये घटा घिर..........।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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