डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 अँधेरा छटेगा

      *गीत*(रौशनी न रही)

ये घटा घिर गई,रौशनी न रही,

ग़म न करना,अँधेरा छँटेगा ज़रूर।

रात आयी है इसको तो आना ही था-

ग़म न करना सवेरा  रहेगा ज़रूर।।ये घटा घिर.......


हैं जो बादल यहाँ, चंद लम्हों के हैं,

गर्मियाँ-सर्दियाँ सिर्फ़ कहने को हैं।

इनका आना हुआ,समझो जाना हुआ-

ग़म न करना बसेरा रहेगा ज़रूर।।ये घटा घिर........


यह जो तूफ़ान है,इसमें ईमान है,

फ़र्ज़ पूरा करेगा चला जाएगा।

इसको मेहमाँ समझ कर गले से लगा-

देखना,गम घनेरा घटेगा ज़रूर।।ये घटा घिर........


ज़िंदगी के कई रूप देखे हैं हम,

कभी खुशहाल है तो कभी बदहाल है।

वक़्त ये है बदलती घड़ी की तरह-

देखना,सुख का फेरा लगेगा ज़रूर।।ये घटा घिर........


भूख है,प्यास है,आस-विश्वास है,

शांति है,क्रांति है,इसमें उपवास है।

ज़िंदगी ऐसी गर,हम हैं करते बसर-

जग ये जन्नत का डेरा बनेगा ज़रूर।।ये घटा घिर........


अभी वक़्त का दौर नाज़ुक बहुत,

है चलना सँभल कर कठिन पथ बहुत।

अपने जीवन का रक्षक स्वयं ही बनो-

ज़िंदगी में तभी सुख मिलेगा ज़रूर।।ये घटा घिर..........।।

                     ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                        9919446372

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