ग़ज़ल
गर्दिश में आ गये हैं क्या आज सब सितारे
डूबी है नाव अपनी आकर के ही किनारे
आवाज़ देते देते साँसें ही थम गयीं थीं
कोई भला कहाँ तक बोलो उन्हें पुकारे
जब मौसम-ए-बहाराँ में साथ तुम नहीं हो
बेरंग लग रहे हैं दिल को सभी नज़ारे
बचता भी मैं कहाँ तक उस शोख की नज़र से
तक तक के तीर उसने मेरे जिगर पे मारे
राह-ए-सफ़र में इतनी दुश्वारियाँ थीं लेकिन
*मंज़िल पे आ गये हम बस आपके सहारे*
कैसे बताओ हमको यारो सुकून आये
नाराज़ जब हैं वोही जो खास हैं हमारे
इस बात का ही *साग़र* दिल को मलाल होता
बरसे थे संग हम पर हाथो से ही तुम्हारे
🖋️विनय साग़र जायसवाल
31/1/2021
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