बासन्ती विरह
सुनु आया मधुमास सखि,
लगा हृदय बिच बाण ।
देहीं तो सखि है यहाँ ,
प्रियतम ढिंग हैं प्राण ।
केहिके हित संवरूं सखी,
केहि हित करूं सिंगार।
बाट निहारूं रात दिन ,
क्यूँ सुनते नाहि पुकार।
ऋतु बासन्ती सुरमई ,
पिया मिलन का दौर ।
पियरी सरसों खेत में ,
बगियन में है बौर ।
कैसो ये मधुमास सखि,
जियरा चैन ना पाय ।
नैनन से आंसू झरत ,
उर बहुतहि अकुलाय ।
पिय कबहूँ तो आयंगे ,
वापस घर की राह ।
बाट निहारूँ दिवस निसि ,
उर धरि उनकी चाह।
सबके प्रियतम संग हैं ,
बस मोरे हैं परदेस।
जियरा तड़पत रात दिन ,
याद नहीं कछु शेष ।
मन मेरो पिय सँग है,
ना भावे कोई और ।
वो दिन सखि कब आयगो ,
पिय सिर साजे मौर ।
रात दिवस नित रटत हूँ,
मैं उनही को नाम ।
उनके बिन ना चैन उर,
ना मन को आराम ।
डर लागत है सुनु सखी ,
वह भूले तो नाह ।
हम ही उनकी प्रेयसी ,
हम ही उनकी चाह।
ऋतु बासंती सुनु ठहर ,
जब लौं पिया ना आय ।
तू ही सखि बन जा मेरी,
प्रियतम दे मिलवाय ।
सुषमा दिक्षित शुक्ला
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