डॉ.राम कुमार निकुंज

 दिनांकः ०१.०२.२०२१

दिवसः सोमवार

छन्दः मात्रिक

विधाः दोहा

विषयः वसन्त

शीर्षकः लखि वसन्त कवि कामिनी


खिली      मंजरी      माधवी   प्रमुदित      वृक्ष    रसाल।  

हिली     डुली  कलसी     प्रिया, हरित   खेत   मधुशाल।।१।।


वासन्तिक    पिक गान    से , मुदित    प्रकृति अभिराम।

बनी      चन्द्रिका  रागिनी , प्रमुदित     मन     सुखधाम।।२।।


मधुशाला       मधुपान      कर , मतवाला     अलिवृन्द।

खिली   कुसुम     सम्पुट  कली ,पा   यौवन   अरविन्द।।३।।


नवकिसलय     अति    कोमला ,  माधवी लता  लवंग।

बहे    मन्द  शीतल    समीर , प्रीत      मिलन   नवरंग।।४।।


नवप्रभात     नव किरण  बन ,स्वागत   कर  मधुमास।

दिव्य    मनोरम    चारुतम , नव जीवन     अभिलास।।५।।


खगमृगद्विज   कलरव  मधुर , सिंहनाद      अभिराम।

लखि     वसन्त   गजगामिनी , मादक रति  सुखधाम।।६।।


नव जीवन   उल्लास   बन , सरसों    पीत       बहार।

मंद      मंद    बहता    पवन ,   वासन्तिक    उपहार।।७।।


गन्धमाद    मधुमास      यह , उन्मादक     रतिकाम।

रोमांचित    प्रियतम   मिलन , आलिंगन    सुखधाम।।८।।


काम   बाण    संधान  से ,  मदन      मीत  ऋतुराज।

प्रीत   युगल  घायल   हृदय , चारु   प्रीति    आगाज़।।९।।


भव्य    मनोरम चहुँ   दिशा , कल  कल सरिता धार।

इन्द्रधनुष     सतरंग    नभ ,  वासन्तिक      उपहार।।१०।।


लखि वसन्त कवि कामिनी,ललित कलित सुखसार।

पी      निकुंज   रस  माधुरी ,  आनन्दित      संसार।।११।।



कवि✍️ डॉ.राम कुमार "निकुंज"

रचनाः मौलिक (स्वरचित)

नई दिल्ली

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